दाऊ रामचन्द्र देशमुख कृत चंदैनी-गोंदा के सह-संगीत निर्देशक “श्री गिरिजा कुमार सिन्हा” की आठवीं पुण्यतिथि पर स्मरणांजलि
मोर संग चलव रे, वा रे मोर पँड़की मैना, धनी बिना जग लागे सुन्ना, चौरा मा गोंदा रसिया, बखरी के तूमा नार बरोबर मन झूमे, छन्नर-छन्नर पैरी बाजे, हम तोरे संगवारी, मन डोले रे माघ फगुनवा, संगी के मया जुलुम होगे, मँगनी मा माँगे मया, दया-मया ले जा रे मोर गाँव ले, अहो मन भजो गणपति, मोर धरती मैया जय होवै तोर, मँय छत्तीसगढ़िया हँव, फिटिक अँजोरी निर्मल छैंहा, मोला जावन दे न रे अलबेला मोर, मीर कुरिया सुन्ना रे, जैसे सैकड़ों कालजयी छत्तीसगढ़ी गीत इतने अधिक लोकप्रिय हो चुके हैं कि केवल अपने इंटरल्यूड्स से ही पहचान में आ जाते हैं। इन गीतों में मुख्यतः हारमोनियम, बाँसुरी, इलेक्ट्रिक-बेंजो, मोहरी, घुँघरू, तबला और ढोलक जैसे पारम्परिक वाद्ययंत्रों का प्रयोग हुआ है। हारमोनियम में सिद्ध हस्त श्री खुमानलाल साव, बाँसुरी में सिद्धहस्त श्री संतोष टाँक, इलेक्ट्रिक बेंजो में सिद्धहस्त श्री गिरिजाकुमार सिन्हा, मोहरी में सिद्धहस्त श्री पंचराम देवदास, तबला में सिद्धहस्त श्री महेश ठाकुर और ढोलक में सिद्धहस्त श्री केदार यादव, इन सभी का पावन संगम चंदैनी गोंदा में हुआ था। चंदैनी गोंदा के संस्थापक दाऊ रामचंद्र देशमुख के अथक परिश्रम और प्रयासों से संगीत की इन विभूतियों का संगम एक साथ संभव हो पाया था। इनमें से प्रत्येक वादक न केवल अपने वाद्ययंत्र के विशेषज्ञ थे बल्कि संगीत की बारीकियों के मर्मज्ञ थे। जब भी कोई नया गीत कम्पोज़ किया जाता था तब ये वादक अपने अपने म्यूज़िक पीस के बारे में बताते थे फिर आपसी विमर्श द्वारा उन म्यूज़िक पीसेज़ को मान्यता दी जाती थी और रिहर्सल करके अंतिम रूप दिया जाता था। आज चंदैनी गोंदा के इलेक्ट्रिक बेंजो-वादक और सह-संगीत निर्देशक श्री गिरिजा कुमार सिन्हा की सातवीं पुण्यतिथि है। मैं उन्हें श्रद्धापूर्वक अपनी स्मरणांजलि समर्पित करता हूँ।
छत्तीसगढ़ी संगीत के इस बेजोड़ कलाकार का जन्म
19 अक्टूबर 1940 को हुआ था। इनकी कर्मभूमि संस्कारधानी राजनाँदगाँव थी। पूजा के फूल (चंदैनी गोंदा) के संगीत निर्देशक श्री खुमानलाल साव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले श्री गिरिजा कुमार सिन्हा सह-संगीत निर्देशक थे। देवार डेरा में संगीतकार द्वय श्री खुमानलाल साव व श्री गिरिजा कुमार सिन्हा की जोड़ी ने छत्तीसगढ़ को बेजोड़ गीतों की सौगात दी थी। चंदैनी गोंदा के लोकार्पण के बाद दाऊ रामचंद्र देशमुख ने अपने कालजयी लोकनाट्य “कारी” में गिरिजा कुमार सिन्हा जी को संगीत का स्वतंत्र उत्तरदायित्व दिया था जिसे उन्होंने कुशलतापूर्वक निभाया। भैयालाल हेडाऊ जी ने एक साक्षात्कार में बताया था कि पहले उन्हें स्केल का ज्ञान नहीं था। गिरिजा सर ने ही उन्हें स्केल में गाना सिखाया था।
सिन्हा जी चंदैनी गोंदा के प्रथम प्रदर्शन से लेकर विसर्जन तक (07 नवंबर 1971 से 22 फरवरी 1983 तक) जुड़े रहे। पूजा के फूल (चंदैनी गोंदा) ने जब अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर ली तब दाऊ जी ने इस फूल (चंदैनी गोंदा) के विसर्जन की घोषणा कर दी थी। तब दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ने “अनुराग-धारा” नाम से एक सांस्कृतिक मंच का दायित्व कविता वासनिक और विवेक वासनिक को सौंपा जिसे उन्होंने गिरिजा कुमार सिन्हा के नेतृत्व में सहर्ष स्वीकार करते हुए अनवरत चलाया और यह मंच आज भी निर्बाध चल रहा है। दाऊ जी के “चंदैनी गोंदा” के विसर्जन के उपरान्त संगीतकार खुमानलाल साव इसी नाम से सांस्कृतिक मंच चलाते रहे। इसे उन्होंने अंतिम साँस तक बिना किसी व्यवधान के चलाया। इन दोनों ही मंचों से मुख्यतः उन्हीं गीतों की प्रस्तुतियाँ होती हैं जो मूल चंदैनी गोंदा के मंच से हुआ करती थी।
श्री गिरिजा कुमार सिन्हा प्रारंभ में राजनाँदगाँव के ऑर्केस्ट्रा से जुड़े रहे। उन्हें भारतीय फिल्म संगीत का भी गहन ज्ञान था। स्वभाव से संकोची और मितभाषी थे। उन्होंने आत्म-मुग्ध होकर कभी भी अपनेआप को प्रचारित नहीं किया। संगीत की बारीकियों का उन्हें गहरा ज्ञान था। मंचीय प्रस्तुतियों के दौरान यदि किसी भी तंतु वाद्य या ताल वाद्य में रत्ती भर भी विचलन का भान होता था तो वे प्रस्तुति को रोक देते थे और वांछित सुधार के उपरान्त ही अगले गीत को प्रस्तुत करते थे। उनके निर्देशन में प्रस्तुत प्रत्येक गीत संगीत की दृष्टि से बिल्कुल दोषरहित होता था। अनुशासन के मामले में वे कभी भी समझौता नहीं करते थे।
जब किसी नए गीत को संगीतबद्ध किया जाता है तो वह कार्य एक टीम-वर्क कहलाता है। गीतकार, संगीतकार, प्रत्येक गायक और प्रत्येक वादक की इस कार्य में समान सहभागिता होती है अतः किसी भी संगीतबद्ध मूल गीत की सफलता का श्रेय प्रत्येक कलाकार को जाता है।
दुर्ग के ताज अली थारानी भाई ने चंदैनी गोंदा के कुछ चयनित गीतों की रिकार्डिंग म्यूज़िक इंडिया लि. (पोलीडोर) मुम्बई से सन् 1982 में करवायी थी। कुल 11 ई पी रिकॉर्ड बने थे जिनमें से 9 रिकॉर्ड चंदैनी गोंदा के थे। लक्ष्मण मस्तुरिया जी के विशेष आग्रह पर दो ई पी रिकार्ड्स केदार यादव के भी बने थे। चंदैनी गोंदा के समस्त 9 रिकार्ड पर संगीतकार खुमान-गिरिजा अंकित है। इन सभी गीतों ने छत्तीसगढ़ी गीतों की बिक्री के लिए एक मार्केट तैयार किया था। इन सारे के सारे रिकॉर्ड की बिक्री ने बिक्री का एक नया रिकॉर्ड बनाया। 1983 में ही कैसेट्स की क्रांति आ गई थी और म्यूज़िक इंडिया लि. ने भी ओरिजिनल कैसेट्स रिलीज किये थे फिर भी स्थानीय कैसेट्स कंपनियों ने इन्हीं गीतों के कैसेट्स बना कर खूब बेचे। बाद में इन्हीं गीतों की सी डी बनाकर बेची। इन्हीं गीतों को अनेक कलाकारों से अपनी आवाज में री-रिकार्डिंग करवायी और आज भी इन्हीं गीतों को गा रहे हैं।
संगीतकार खुमानलाल साव, गिरिजा कुमार सिन्हा, संतोष टाँक, महेश ठाकुर, केदार यादव और पंचराम देवदास जी छत्तीसगढ़ी संगीत की गगनचुम्बी अट्टालिका की नींव के बेशकीमती पत्थर हैं। किसी के भी अवदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।
श्री गिरिजा कुमार सिन्हा 09 सितम्बर 2016 को हम सब को छोड़ कर ब्रह्मलीन हो गए। उनका भौतिक शरीर भले ही ओझल हो गया है किंतु वे बेंजो की झंकार बन के हम सबके दिलों को सदैव झंकृत करते रहेंगे।
(चंदैनी गोंदा के मंच तथा दिल्ली के छायाचित्रों के फोटोग्राफर श्री प्रमोद यादव जी से साभार, श्री गिरिजा कुमार सिन्हा जी के रंगीन चित्र श्री रवि रंगारी जी से साभार, ई पी रिकॉर्ड, रिकॉर्ड कव्हर के चित्र श्री दिनेश गोस्वामी जी से साभार)
आलेख – अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़