बुद्धादित्य मुखर्जी इस शताब्दी के सबसे बड़े सितार वादक
बुद्धादित्य मुखर्जी इस शताब्दी के सबसे बड़े सितार वादक हैं ऐसा कुछ समय पहले विख्यात वीणा वादक बालाचंदर जी ने कहा था,ये इस देश का दुर्भाग्य है कि इनके स्तर के सितार वादक को अपने देश से ज्यादा विदेश के संगीत प्रेमी ज्यादा पसंद करते हैं,
ये भिलाई की राजहरा माइन्स में पैदा हुए वहीं मेरा भी जन्म हुआ,इनके पिता बिमलेंदु मुखर्जी वहां बड़े अफसर थे और एक उत्कृष्ट सितार वादक,रिटायर होने के बाद वो खैरागढ़ के इंदिरा संगीत विश्व विद्यालय में वाइस चांसलर रहे,अपने आप में बहुत महान सितार वादक थे,पहले मंच पर बजाते थे भिलाई में एक संगीत ग्रुप भी बनाया था,
जब बुद्धादित्य मुखर्जी युवक हुए तो पिता पुत्र को मंच पर सितार वादन करना था,उस दिन बुद्धादित्य ने परफेक्ट से उपर सितार बजाया,उस दिन मंच पर बुद्धादित्य के पिता बिमलेंदु ने नहीं बजाया,उन्होंने कहा आज के बाद मंच पर कभी नहीं बजाऊंगा क्योंकि अब मेरा बेटा मुझसे अच्छा सितार बजाता है,मेरी भूमिका आज से मंच पर समाप्त,अब गुरु की भूमिका होगी ताकि ज्यादा से ज्यादा उत्सुक लोगों को सिखा सकूं,आज देश में और विदेश में उनके शिष्य शिष्याएं हैं जो इस परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं,
बिमलेंदु का जन्म बांग्लादेश में हुआ जहां इनके पिताजी सरकारी सर्जन थे,संगीत का माहौल था,एक जमींदार थे जिनके घर संगीत के सारे वाद्य थे,हमेशा महफिल लगती थी, बिमलेंदू हर शास्त्रीय वाद्य बजाने लगे,16 साल की उम्र से उन्हें बैठाया जाता था,कोई यदि सही न बजाए तो उन्हे कहा जाता था,उन्होंने बहुत से गुरु से सीखा,बिमलेंडु ऐसा कोई तंतु वाद्य नहीं है जिसे बेहतरीन न बजा सकें,उन्होंने अपने घराने को अपने गुरु के नाम से रखा,इटावा के उस्ताद इमदाद खान के नाम से इमदादखानी घराना
साथ ही उन्होंने भूगर्भ विज्ञान में एमएससी किया पढ़ने में भी बहुत तेज थे,कई जगह काम करने के बाद वो भिलाई आए जहां माइनिंग के विभाग में काम करते हुए सबसे बड़े ओहदे तक पहुंचे,मेरे पिताजी के भी एक समय बॉस थे,बुद्धादित्य मेरे बड़े भाई से कुछ वर्ष बड़े थे,वो सिर्फ पढ़ता था और सितार बजाता था,रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से मेटलर्जी में शिक्षा ली और टॉप किया,मुझे याद है रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के सामने एक सितार बजाते हुए मूर्ति लगी थी इनके सम्मान में,
उसके बाद उन्हें सिंधिया परिवार ने इन्हें और मुकुंद भाले दो हजार महीने का वजीफा दे दिया,1976 की बात है शायद,उसके बाद ये देश विदेश के दौरे करने लगे,उस समय ये सितार वादन और मुकुंद भाले तबला वादन में नए उभर रहे थे दोनो बेहतरीन वादक थे,
बाद में बुद्धादित्य की शादी हुई और ये कलकत्ता शिफ्ट हो गए,कलकत्ता से ज्यादा सुविधा है उन्हे,उन्होंने कभी बताया कि जब बहुत छोटे थे तो उन्हें याद है किसी कार्यक्रम के बाद उन्हें बहुत देर तक उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब ने अपनी गोद में बैठाए रखा था,
बुद्धादित्य का बेटा शुभोदित्य भी भिलाई के रिसाली डीपीएस से पढ़ा,वो छोटा था तो उसको उसके दादा छोटा सा सितार लाकर दिए, शुभो ने कहा उसे सितार नहीं बजाना,
बिमलेंदु का दिमाग छुरी से तेज,वो डीपीएस गए और उसके टीचर से मिले कुछ प्लानिंग की
दूसरे दिन टीचर ने सब बच्चों से पूछा उनके पिता क्या करते हैं,बहुत छोटे बच्चे थे, शुभो की बारी आई तो बोला उसके पापा सितार बजाते हैं,टीचर ने पूछा दादा क्या करते हैं, शूभो बोला वो भी सितार बजाते हैं,टीचर ने पूछा वो भी बजाता है क्या, शुभो ने कहा हां बजाता है,टीचर बोले अच्छा एक हफ्ते बाद थोड़ा सा बजाना स्कूल में,
स्कूल बस से शुभो बाबू घर पहुंचे जहां उसके दादा उसे लेने आते थे,वो दादा से बोला आज थोड़ा गड़बड़ हो गया,फिर उसने सब बताया,दादा बोले लेकिन तुम तो बजाते नहीं,कोई बात नहीं एक हफ्ते में सीख जाओगे,
घर जाकर बिना यूनिफॉर्म बदले पहले शुभो बाबू को दादा ने सितार पकड़ा दिया,
एक हफ्ते के बाद शुभो ने स्कूल में बजाया,
आज शुभो भी देश विदेश में घूमकर सितार बजाता है,
आज बिमलेंद नहीं है लेकिन अपनी मृत्यु से बहुत साल पहले एक दिन बोल दिया कि फलानी तिथि को वो मर जायेंगे,वो ज्योतिष शास्त्र और गणना के भी विद्वान थे,बोले उनके पिता दादा सब पहले से अपने मरने की तारीख बताए थे,बहुत हल्ला हुआ इनके शिष्य शिष्य देश और विदेश से घबराकर भिलाई आए,
नेहरू नगर में घर था,रोज सुबह चार बजे उठ कर नहा कर पूजा करके तीन घंटे सितार बजाते थे,बंगला धोती कुर्ता में,जर्दा पान कभी खाते थे और एक बड़ा सा चांदी का उगालदान रखते थे,
Sandeep Ghule सर के घर सूर्या विहार में बिमलेंदु जी के दर्शन का सौभाग्य मिला,घुले सर के घर साल में एक दो बार संगीत की महफिल होती थी,बहुत बार अच्छे अच्छे लोगों का वादन गायन सुनने का सौभाग्य मिला,एक सीनियर आईएएस अफसर थे वो भी अच्छे शास्त्रीय गायक थे,एकदम साधारण सरल आदमी की तरह गाते थे मिलते थे,
घुले सर बहुत ज्यादा संगीत के प्रेमी हैं और बिलमेंदू जी के पारिवारिक मित्र,कुछ ही लोग रहते थे महफिल में जो संगीत के प्रेमी थे,संगीत के बाद भोजन होता था शानदार,
एक बार उनके घर अमेरिका से अनुपमा भागवत जी सितार बजाने आई थी जिनके गुरु बिलमेंदु जी थे,इसलिए वो भी बैठकर सुन रहे थे,उस दिन कई घंटे उनके वादन को पास से बैठकर सुना तो मेरी समझ में आया कि सिर्फ कला नहीं ताकत और मेहनत लगती है सितार बजाने में,
बुद्धादित्य जैसा वादक किसी परिचय का मोहताज नहीं,
ये ब्रिटेन की संसद में सितार या कोई वाद्य बजाने वाले इकलौते कलाकार हैं,कुलदीप नैयर राजदूत थे,वो भी ब्रिटेन की संसद में उस दिन मौजूद थे किंतु सरकारी गजट में पता नहीं क्यों नहीं डाला,सोचिए भारत सरकार रिकॉग्नाइज नहीं करती,ब्रिटेन की संसद के रिकॉर्ड में है,फिर सिडनी में एक फिलहार्मोनिक ऑर्केस्ट्रा था, लंदन के कौन तो लॉर्ड थे वो संगीत के मुखिया थे,वो बुद्धादित्य से मिलने मुंबई आए,बुद्धादित्य ने उधर सिडनी में वेस्टर्न ऑर्केस्ट्रा के साथ सितार बजाया,इन्हे लोग ज्यादा नहीं जानते लेकिन सही में आज इनके जैसा कोई नहीं,न किसी से इन्हे शिकायत है न गिला,सिर्फ सितार,बेटा भी अब बहुत आगे चला गया,
बुद्धादित्य के पिताजी बहुत ही महान वादक और संगीत के विद्वान थे,साथ ही टॉप के और बेहद सख्त अफसर,
बुद्धादित्य ने मेटलर्जी के ज्ञान को सितार में डाला,सितार के तारों के लिए किस तरह की मेटल और एलॉय होना चाहिए खुद डिजाइन किया,इनके घर वर्कशॉप है जिसमे अपने सितार ये खुद बनाते हैं,सितार के तारों की संख्या में भी बदलाव किया,इनका जीवन ही संगीत है,विलंबित हो द्रुत अलाप या बोल या सरगम या तराना,बोलो की स्पष्टता इनके वादन में रहती है,बहुत द्रुत गति से सुर पर टिके रहना साफ बोल निकालना इनके वादन की खासियत है,
मेघदूत में कालिदास ने एक शापित गंधर्व का चरित्र गढ़ा,एक ऐसा गंधर्व जिसे इंद्र ने किसी बात पर कुपित होकर अलकापुरी से धरती पर फेंक दिया,
बुद्धादित्य का सितार वादन सुनने के बाद ये ही भावना उभरती है,
एक शापित गंधर्व
(संदीप घुले सर का आभार जिन्होंने काफी कुछ मुझसे शेयर किया था जिसके बिना ये पोस्ट मैं नहीं लिख पाता,इसलिए ये पोस्ट घुले सर को समर्पित है🙏🙏) लेखक – अमिताभ शुक्ला, भिलाई