पुरखों का श्राद्ध (लघुकहानी)
रामा ने एक बड़ा भोज रखा है। आज उसके बाबूजी का श्राद्ध है। बाबूजी फारेस्ट में रेंजर थे। जिंदगी भर अनेकों जगहों पर रहे। सम्मान की जिंदगी जीते रहे। उसका एक बेटा था और उससे छोटी बेटी थी। दोनों जहाँ जैसा स्कूल मिला वहीं पढ़ लिये। कालेज आते आते ये लोग रायपुर आ गये।
माँ तो बहुत पहले ही चली गई जब ये लोग स्कूल में थे। बाबूजी हमेंशा बच्चों को प्यार से रखे। हर सुविधा का ध्यान रखे। बेटी की बिदाई किये तो ट्रक भर सामान दिया। बहु लाये तो कुछ नहीं लिया। जब अवकाश ग्रहण किये तब उनके घर में गेहूँ ,जंगल का खूशबूदार चावल, घी ड्रम में भरा था। बहु ने घर अच्छे से सम्हाल लिया था।
बेटी कभी कभी आती थी तो सबसे प्यार से मिलती थी। भाभी के कहने पर कभी कभी रात भी रुक जाती थी। बहु की भी एक बेटी हो जाती है। रामा की तबीयत अब जवाब दे रही थी। अधिकतर समय अपने कमरे में ही रहते थे। बहु का तेवर बदलने लगा था। अब उसके घर आये दिन पार्टी होती थी। बाबूजी कमरे में क्या गये उनकी किस्मत बदल गई।
अब नाश्ता और खाने का समय ही बदल गया। बेटा आफिस से आता तो अपने बच्चे में व्यस्त रहता। रात को सोते समय देखने आ जाता था कभी नहीं भी आता था।
रामा अपने समय को याद करते रहते थे। कितने नौकर थे घर मे। सामान भरा रहता था। एक गाड़ी खड़ी रहती थी। यही बच्चे तब आगे पीछे घूमते थे। आज समय बदल गया। कुछ खाने का मन है तो बाद में मंगा देंगें बोल कर पल्ला झाड़ लेते थे। रामा अपने पुराने दिन को याद कर रहा था। जो जब खाना है नौकर तैयार कर देता था। उसकी पत्नी थी तब आये दिन गुझिया और गुलाब जामुन बना रखा रहता था। वह रोज खात थे। आज एक गुलाब जामुन भी मांगना पड़ता है। कमरे में बंद रामा अब बात नहीं करते थे। कभी बच्चे आकर बातें करते थे तो हाँ हूँ.ही बोलते थे। एक दिन रात को बेटा आया तो बोले “तेरी माँ मुझे लेने आई थी। चलो बोल रही थी।.रोज आती हैं। ”
“सपना है यह, इसके बारे में मत सोचो।”
कभी कभी रामा का एक.दोस्त आता था। वह सब कुछ देखकर दुखी था। एक दिन सोये सोये ही रामा चले गये अपने धाम। उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके कमरे से कोट पेंट टाई निकला। कुछ नये कपड़े भी मिलेः जिसे यह सोच कर नहीं पहने थे की जब बाहर जाऊंगा तब पहनुँगा। इच्छायें कभी मरती.नहीं। अंतिम समय में भी कुछ.न कुछ ईच्छा हो जाती है। पर रामा ने खाने के अलावा कभी कुछ मांगा नहीं। कमरे बंद ईच्छाओं को मरते महसूस करता रहा। पत्नी की याद में जरुर दिल रोता था पर उन्होने कभी आँसू नहीं बहाया। दिल के अंदर ही आँसू अपनी जगह बना लिये थे। आज वह सूकून के साथ जमीन पर लेटे हैं। बेटी भी आ गई है। वह रामा के पास ही बैठी है। रामा के दोस्त.आये, कालोनी के कुछ लोग भी आये। बहु की किटी पार्टी के लोग सजधज कर आये। अंतिम बिदाई हो गई। आँसू तो एक बेटी के आँखो से निकला। बहु ने राहत की साँस ली।
दो दिन बाद एक लम्बी चौड़ी लिस्ट बनाई गई जो लोग आयेंगे उनका। खाने में क्या क्या रखना है। बाबू जी क्या क्या खाते हैं? क्या पसंद है। आलू गोभी की सब्जी, बूंदी कढ़ी, सूखी भिंडी। खीर पूड़ी,बड़ा, बूंदी के लड्डु, गुलाब जामुन, काजू कटली जलेबी। चावल ,दाल.फ्राई। धसवें दिन.खाना रखा गया।उसके पहले.ईलाहाबाद से भु आ गये थे।
खाने के लिये.तो जैसे शादी में.आते है.ऐसी भीड़ थी। रामा का दोस्त एक जगह.बैठ कर.सब कूछ देख रहा था। उसे कई बार खाने को बोले पर वे आखरी में खाऊंगा करके बैठे रहे।.जब सब का खाना हो गया घर.वाले बैठ रहे थे तब भी उन्हे बुलाया गया। तब उन्होने कहा”मेरा मन.खाने को नही है। जब तक मेरा दोस्त जिवेशत रहा.गुलाबजामुन, जलेबी के लिये तरसता रहा। ढंग का नाश्ता भी नहीं मिला उसे। आज इन लोगो को खिला कर दिखावा करना चाहते हो। ऐसा खाना मैं नहीऔ खाऊँगा जिसके लिये मेरा दोस्त तरसते रहा। चलो तुम लोग खाओ मैं जाता हू।”
“अंकल हम.लोग आपसे माफी माँगते है।”
“माफी मांगने से रामा लौट आयगा क्या?”
तुम्हारा भोज तुमको मुबारक।
रामा का बेटा स्तब्ध खड़ा था। अब उसे एहसास हो रहा था कि वे लोग क्या किये हैऔ। सच में अब दिन नहीं लौटैगा। सिर झुका कर चुपचाप खाकर सब लोग घर चले जाते है। बचत खाना झोपड़पट्टी में बांटने बोल देता है।
सुधा वर्मा 29/9/2024