भरत मुनि का नाट्य शास्त्र भारत की कला चेतना और चिंतन की गंगोत्री है
भरत मुनि का नाट्य शास्त्र भारत की कला चेतना और चिंतन की गंगोत्री है. पिछले दो हजार बरसों में इसने कला -जगत पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है. विशेष रूप से दक्षिणपूर्व के एशियाई देशों में नाट्यशास्त्र का अध्ययन अध्यापन छठी सातवीं शताब्दियों से आज तक होता आ रहा है तथा इन देशों के रंगमंच के विकास में भी इसकी निर्णायक भूमिका रही है
इसकी रचना मुख्यत:नाट्यरचना करने वाले कवियों की शिक्षा के लिए की गई. इस तरह यह केवल नाट्य नहीं श्रव्य और पाठ्य कला/साहित्य आदि सृजनात्मक विधाओं और उनके रचयिताओं का आदि मार्गदर्शी ग्रन्थ है. इसके साथ यह सौंदर्यशास्त्र साहित्य शास्त्र और व्याकरण चिंतन को, साथ ही अभिनय और लेखन को शिक्षा देने की सामर्थ्य से अनुषक्त ग्रन्थ भी है.
भरत मुनि ने इस माध्यम से यह एक बुनियादी कला दृष्टि सी दे दी है कि संसार की ऐसी कोई कला नहीं है, ज्ञान, शिल्प, विद्या, योग और कर्म नहीं है, जो नाट्य काअंग न बन सके.
यह कौन नहीं जानता कि भारत का कालिदास कृत अभिज्ञान शाकुंतल आज एक वैश्विक नाट्यकृति है. भास हों या भवभूति अथवा अन्य ये सब भरत मुनि के ऋणी हैं और कृतज्ञ भी.
अब चूँकि हमारे समय के परम संस्कृतज्ञ आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी ने, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अनुरोध पर इसका मूल सहित हिन्दी अनुवाद यथावश्यक चित्रावलियों के साथ
हमारे लिए तैयार कर दिया है, तो यह हम कलानुरागियों और कला चिंतकों, नाट्य मंडलियों, उनके निर्देशकोंऔर समर्पित रंगकर्मियों के लिए एक अयाचित वरदान जैसा है कि वे अपनी कला, साहित्य और रंग साधना का चेहरा पहचानने के लिए इससे अपेक्षित संवाद करें.
मैं इस अनुष्ठान की संकल्पना करने वाले राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक चित्तरंजन त्रिपाठीऔर उसके अध्यक्ष श्री परेश रावल की सुमति का अभिनंदन करना चाहता हूँ कि उन्होंने इसे अत्यंत रियायती मूल्य पर प्रकाशित कर कला और साहित्य की अपूर्व सेवा की है. _ विजय बहादुर सिंह, भोपाल
पुस्तक प्राप्ति का पता—राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, बहावलपुल हाउस भगवानदास रोड, नई दिल्ली-110001.
मूल्य कुल पाँच सौ रूपए.फोन 011-23389138