बस्तर का स्वर्ग –नम्बी
ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर चलते हुए पिछली स्मृतियां रह रह कर आंखो के सामने आती जा रही थी। कई साल पहले जब इस रास्ते पर आया था जो डर अनुभव हुआ था वो अब दूर होता जा रहा था, गड्ढे भर गए थे, इस बार सुरक्षा का मजबूत साया बन चुका था इसलिए बेधड़क हम छत्तीसगढ़ के अंतिम छोर की ओर बढ़ते जा रहे थे। लाल सलाम के सबसे मजबूत जय घोष का इलाका अब वीरान पड़ा था और सफर सामान्य तौर पर खत्म हुआ। हम पहुंच गए बस्तर और तेलंगाना की सीमा पर बसे गांव नम्बी में।
छत्तीसगढ़ का बीजापुर जिला और उस पर भी उसूर क्षेत्र माओवाद से अत्यधिक प्रभावित रहा है। लेकिन हाल के कुछ सालों में सुरक्षाबलों की तैनाती से यह क्षेत्र मुख्य धारा से जुड़ता चला गया है। इसका परिणाम यह हुआ कि यहां के प्राकृतिक स्थलों में पर्यटन के नए नए क्षेत्र दुनिया के सामने आने लगे। इस तरह के पर्यटन स्थलों में नंबी गांव का गगन भेदी झरना सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र बनता गया।
हाल के कुछ दो तीन सालों में ही यह संभव हो पाया कि आम लोग अब नंबी गांव जा सकते हैं। हम भी नंबी गांव की सीमा में स्थित उस पहाड़ी नदी के किनारे पहुंच गए जिस पर यह ऊंचा झरना बनता है। नदी का पानी इतना साफ कि तली में तैरती मछलियां सामने दिखलाई पड़ती है। नदी को पार करते ही गांव प्रारम्भ हो जाता है और गांव में एक मोड़ के बाद से यह आकाश जितना ऊंचा झरना सामने गिरता दिखलाई पड़ता है। गांव के चारों तरफ़ संकनपल्ली की पहाड़ियां किसी ऊंचे किले की दीवारों की तरह एक अभेद्य गढ़ के रुप में बनी हुई है और उस सीधी ऊंची पहाड़ी का यह नंबी झरना मनमोह लेता है।
गांव से झरने की दूरी भले ही तीन चार किलोमीटर की दूरी पर हो किंतु गांव से दिखता झरना ऐसा लगता है जैसे कि बस कुछ कदमों की दूरी पर हो। गांव भी इतना सुन्दर जैसे स्वर्ग अगर की उपमा दी जाय तो वह स्वर्ग यही है। धान के लहलहाते खेत, खेतों में घने पेड़ों की आभा और दूर दूर बने सुन्दर घर, घर भी सबसे अलग हटकर।
दोरला आदिवासी और उनके घर सबसे विशेष होते हैं।मिट्टी के चौकोर और उस चौकोर टोप की खपरैल छत। घर के चारों तरफ़ लकड़ियों की बाड़ी और बाड़ी पर हरी सुनहरी लताएं लिपटी हुई। खेतों के किनारे पूरानी बैलगाडियां, कच्ची पगडंडियां, दूर से दिखता खुबसुरत निर्झर और उसकी मधुर आवाज। सचमूच स्वर्ग है तो बस यहीं नंबी गांव में है। जी चाहता है कि सारी परेशानियों से दूर यही बस जाय।
गांव से जैसे जैसे झरने की तरफ बढ़ते जाओ तो जंगल और घना होता जाता है। पेड़ो की ओट से दिखता यह झरना और भी खूबसूरत होता जाता। हर कोने से झरने की खुबसूरती और बढ़ती जाती, बस कभी इधर से देख ले और तो कभी उधर से। जब झरने के नजदीक पहुंच गए तो फिर झरने का सबसे खुबसूरत रूप सामने आ जाता है। और वह है कि हवा में उड़ती झरने की फुहारें। जो तन मन को शीतल कर देती है और सारी थकान दूर कर मन को प्रफुल्लित कर देती है। झरने की खूबसूरती निहारने में पूरा दिन निकल जाय तो भी कम है। इस झरने की ऊंचाई इतनी अधिक है कि इसे दूर से ही पूरा देखा जा सकता है। पास से तो बस फुहारों में भीगना ही सबसे सुखद अहसास है।
इस झरने को छत्तीसगढ़ के सबसे ऊंचे झरनो में से एक माना जाता है। और यह ऊंचाई लगभग साढ़े पांच सौ फिट मापी गई है। माह जुलाई से अधिकतम माह अक्टूबर तक ही इस झरने के इस अनुपम सौंदर्य को निहारा जा सकता है। ऊसूर से दस बारह किलोमीटर की दूरी दोपहिया वाहन से पुरी कर यहां पहुंचा जा सकता है।
ओम प्रकाश सोनी