आंख से कोई पर्दा उठा…
आंख से कोई पर्दा उठा ही नहीं
जो तमाशा था होना हुआ ही नहीं
इश्क़ तो बस वो पहले पहल ही का था
अब तो दिल टूटने का मज़ा ही नहीं
अपनी मर्ज़ी से दुनिया में ज़िंदा हैं लोग
लग रहा है ज़मीं पर ख़ुदा ही नहीं
उम्र भर साथ रहने से क्या फ़ायदा
जिसको पाया था वो तो मिला ही नहीं
अपने अंदर की दुनिया में मसरूफ़ हूं
मुद्दतों से मैं बाहर गया ही नहीं
ख़ुद को हर शय में ख़ुद आ रहा हूं नज़र
और कहां हूं ये मुझको पता ही नहीं….!!!
अज़्म शाकिरी