मैं… गोबर-माटी से लिपी-पुती देहरी तुम…
मैं…
गोबर-माटी से
लिपी-पुती देहरी
तुम…
आटे, हल्दी, रोली से बने
खुशियों की रंगोली
मैं…
आँगन के बीचों-बीच
तुलसी का चौरा
तुम…
उस चौरे पर जलता
एक दीपक पावन-सा
मैं…
आंगन के कोने में
झरता हरसिंगार
तुम…
उस हरसिंगार को बिखेरते
पुरवइया बयार
मैं..
उस आंगन में उतरी
भोर की उजास
तुम…
निशांत के मन की
भोर से मिलन की आस
मेरी हर अनुभूतियों में
तुम होते हो आस-पास
हम दोनों साथ हैं तो पूरा है
जीवन का कैनवास!!
-अनिला राखेचा