November 15, 2024

ग़ज़ल एक प्रयास मात्र

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1222–1222–1222–1222

काफ़िया – उठाते
रदीफ़ – हैं

नहीं किरदार है ऐसा जो गिरते को उठाते हैं।
कहाँ इंसानियत कोई बची दौलत बनाते हैं ।।

सभी अरमान टूटे हैं कहीं सपने अधूरे हैं ।
गिले शिकवे कहें किस से ग़मों से दिल जलाते हैं।।

यक़ीं किस पर करें हम भी यहाँ अपने पराये हैं।
सभी रिश्ते पुराने जो कहाँ कोई निभाते हैं।।

बदल कर देख ली मैने हवाएं और पानी भी
मगर ये दिल नहीं बदला वही ग़म साथ लाते हैं।।

जिगर के पास रहते हो “शिशिर” कैसे बताऊँ मैं।
तुम्हें कैसे भुलाऊँ मैं दिलों में दर्द आते हैं।।

सुमित्रा शिशिर

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