November 15, 2024

देवारी मँ बारबो माटी के दीया

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विधा- सम मात्रिक छंद
विधान- चार पद,प्रत्येक पद 16-16 मात्राएँ, युगल पद तुकांत, पदांत ऽऽ विकल्प ऽ।।,।।ऽ या ।।।। मान्य, वर्जित ।ऽ।

परब मनाथन अपन देश के,
रंग-ढंग सबे बिदेशी हे ।
बने नकलची बंदर हावन,
कउने मुँह कही स्वदेशी ए ।।

छोड़-छाड़ माटी के दीया,
झालर बिजली के बारत हन ।
कुंभकार मन के धंधा ला,
चौपट हम सब कर डारत हन ।।

माटी-बरतन जब नइ बउरब,
कइसेे ऊंकर जिनगी चलही ।
उन कुम्हार मन बर कुछ करबो,
तव बपुरन के पेट ह पलही ।।

जब दीया माटी के बारब,
माहो जइसन कीरा मरही ।
फसल घलो हर जादा होही,
जम्मों झन के कोठी भरही ।।

देवारी सब बने मनावै ,
सब के घर लछमी आवै ।
सबसे बिनती हावय भइया,
सब कुम्हार मन सुख पावै ।।

अगर पड़ोसी भी खुश रइही,
सच्ची मजा तभे आही जी ।
माटी अउ अंतस के दीया,
जब मिल अँजोर बगराही जी ।।

रचयिता- मोहन लाल कौशिक, बिलासपुर (छ.ग.)
दिनांक- 19/10/2024

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