देवारी मँ बारबो माटी के दीया
विधा- सम मात्रिक छंद
विधान- चार पद,प्रत्येक पद 16-16 मात्राएँ, युगल पद तुकांत, पदांत ऽऽ विकल्प ऽ।।,।।ऽ या ।।।। मान्य, वर्जित ।ऽ।
परब मनाथन अपन देश के,
रंग-ढंग सबे बिदेशी हे ।
बने नकलची बंदर हावन,
कउने मुँह कही स्वदेशी ए ।।
छोड़-छाड़ माटी के दीया,
झालर बिजली के बारत हन ।
कुंभकार मन के धंधा ला,
चौपट हम सब कर डारत हन ।।
माटी-बरतन जब नइ बउरब,
कइसेे ऊंकर जिनगी चलही ।
उन कुम्हार मन बर कुछ करबो,
तव बपुरन के पेट ह पलही ।।
जब दीया माटी के बारब,
माहो जइसन कीरा मरही ।
फसल घलो हर जादा होही,
जम्मों झन के कोठी भरही ।।
देवारी सब बने मनावै ,
सब के घर लछमी आवै ।
सबसे बिनती हावय भइया,
सब कुम्हार मन सुख पावै ।।
अगर पड़ोसी भी खुश रइही,
सच्ची मजा तभे आही जी ।
माटी अउ अंतस के दीया,
जब मिल अँजोर बगराही जी ।।
रचयिता- मोहन लाल कौशिक, बिलासपुर (छ.ग.)
दिनांक- 19/10/2024