हँस रहा विध्वंस का विक्रांत है
हैं चरण,पर आचरण तो भ्रांत है,
घोषणा उसकी, कि वह संभ्रांत है।
धर्म का परिदृश्य, क्यों ऐसा हुआ!
रक्त रंजित ग्राम,गृह,जन-प्रांत है।
हो रहा विश्वास का निर्मम दहन,
हँस रहा विध्वंस का विक्रांत है।
मंद-स्वर,आतंक के प्रतिकार का,
शौर्य-पथ,भयभीत अथवा शांत है।
लेखनी के धर्म की अंत्येष्टि में,
लिख रहा कवि गीत कोमलकांत है।
रेखराम साहू