November 21, 2024

हँस रहा विध्वंस का विक्रांत है

0

हैं चरण,पर आचरण तो भ्रांत है,
घोषणा उसकी, कि वह संभ्रांत है।

धर्म का परिदृश्य, क्यों ऐसा हुआ!
रक्त रंजित ग्राम,गृह,जन-प्रांत है।

हो रहा विश्वास का निर्मम दहन,
हँस रहा विध्वंस का विक्रांत है।

मंद-स्वर,आतंक के प्रतिकार का,
शौर्य-पथ,भयभीत अथवा शांत है।

लेखनी के धर्म की अंत्येष्टि में,
लिख रहा कवि गीत कोमलकांत है।

रेखराम साहू

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *