November 26, 2024

ये दिन गुज़र रहे हैं
या हम गुज़र रहे हैं
आधी है हर कहानी
किरदार मर रहे हैं

ख़ुशबू के बंध खोले
बादे-सबा ने आकर
फ़िर इक नई सुबह को
संग ला रहा दिवाकर
समझाये रोज़ हमको
डूबे उबर रहे हैं
ये दिन गुज़र रहे हैं
या हम गुज़र रहे हैं

हद तोड़ आये हैं हम
आवारगी की सारी
क्या दश्त क्या चमन है
हर सू महक हमारी
तेरे दर से दूर होकर
बस दर-ब-दर रहे हैं
ये दिन गुज़र रहे हैं
या हम गुज़र रहे हैं

छायी है ज़ेह्नो-दिल पे
इक गर्दे-बेक़रारी
जी चाहता था वैसी
गुज़री नहीं हमारी
हर सू महकने वाले
ख़ुद में बिखर रहे हैं
ये दिन गुज़र रहे हैं
या हम गुज़र रहे हैं

मंज़र तमाम जैसे
आँखों को छल चुके हैं
जो ख़्वाब मैंने देखे
वो अब बदल चुके है
आलम है अब ये अपने
होने से डर रहे हैं
ये दिन गुज़र रहे हैं…
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डॉ.पूनम यादव

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