परस तुम्हारा जादू-टोना
छू मंतर हो गई उदासी
एक तुम्हारे आ जाने से ।
संवादों ने मन सहलाया
जो था तुम बिन निपट अलोना
सम्मोहन ने मूँदीं पलकें
परस तुम्हारा जादू टोना
बात बढ़ाई मन मनबढ़ ने
हौले टिके -टिके शाने से ।
गंध हवा की लहकी-बहकी
और तुम्हारा नेह निमंत्रण
इस ठीहे आ टूटे औचक
बरसों बरस निभाये जो प्रण
चाहत ने अनुबंध भरे फिर
लाज-शरम के तहखाने से ।
कौन रेह से धुल सकता है
रंग प्रेम का ऐसा चोखा
बिन वादों का बिन कसमों का
एक कथानक बिल्कुल ओखा
तुम मेरे फिर क्या मिलना है
दुनिया के खोने-पाने से ।
– अनामिका सिंह