सर्दियां, प्यार और यादें …
अपनी खिड़की के कांच में
जमी धुंध पर
कभी लिखा था तुमने
उंगलियों से मेरा नाम
वह धुंध लौट आई है अभी
मेरी खिड़की पर
तुम्हारे नाम के साथ
🍁
उन सर्द शामों को
दो उंगलियां होठो से लगाकर
सिगरेट की तरह भाप छोड़ती
कित्ता हंसती थी तुम
इन सर्दियों
तुम्हारी वह भाप
मेरी आंखों में पिघल रही है
🍁
पिछली सर्दियों ‘नुक्कड़ कैफे’ में
मेरे हाथ पर अपना हाथ रखकर
तुमने आंखों से कहा था
बिल मुझे देने दो
कितने गर्म हाथ थे तुम्हारे
अभी जैकेट की जेब में
उसी बिल के पुर्जे को
मुट्ठी में संभाले हूँ
तुमने अपने गर्म हाथ
फिर से रख दिये हैं
मेरे हाथ पर
🍁
इतनी ठंड है
स्कार्फ बांध लो न
तुम्हारी एक्टिवा को चलाते
मैंने कहा था
लेफ्ट व्यू मिरर में
तुमने मुस्कुरा कर कहा
फिर तुम्हे आईने में
कैसे दिखूंगी
अभी अपनी बाइक पर हूँ
व्यू मिरर में
लंबी सूनी सड़क दिख रही है
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– पीयूष / आखिरी दिसंबर 1