यशस्वी गीतकार कवि दादा श्री नारायण लाल परमार …
हमारे शरीर में आंखें होती हैं ठीक उसी तरह
जिस तरह किसी मकान में खिड़कियां होती हैं
अर्थात खिड़कियां
किसी भी मकान की आंखें होती हैं
यद्यपि जो हमें दिखाई नहीं देता
वह काल भी, क्या हमारी आंखों के
निकट पर से नहीं गुजरता ?
समय के पास तो
मोर का शरीर होता है
और हिरण की गति
आंख तो सब के पास होती है लेकिन दृष्टि सब के पास नहीं होती
खिड़की खोलना एक अलग बात है
और खिड़की का खुला रह जाना बिल्कुल
दूसरी बात है
खुली खिड़की का महत्व सचमुच
छोटा-मोटा नहीं होता
यह तो किसी बच्चे से ही पूछना होगा
कि ट्रेन की खुली हुई खिड़की का महत्व
क्या होता है ‘सचमुच वह
प्यासी आंखों के लिए एक सुराही से
कम नहीं होता
कविता की यह पंक्ति देश के यशस्वी गीतकार कवि दादा श्री नारायण लाल परमार जी की है। दादा आज 98 साल के हो गए। दादा आज हमारे बीच रहते तो घर में काव्य गोष्ठी अवश्य होती। चाय की चुस्की में प्रसिद्ध व्यंग्यकार त्रिभुवन पाण्डेय, सुप्रसिद्ध कवि सुरजीत नवदीप,मरहुम गीतकार मुकीम भारती, सर्वहारा वर्ग के लोकप्रिय कवि भगवती सेन, छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक यात्रा चंदैनी गोंदा के प्रथम उद्घोषक डॉ.सुरेश देशमुख व नये पुराने सभी वर्ग के साहित्य रसिक होते। सबसे पहले दादा परमार जी की जन्मदिन को सादर प्रणाम।यह जन्मदिन मेरे लिए दादा के आशीर्वाद के साथ मुजगहन गांव में बड़ा आयोजन करने का दिन होता था जिसके कारण मुझे लिखने पढ़ने व साहित्य के क्षेत्र में प्रसिद्धि मिली। दादा की प्रसिद्धि गीतकार के रूप में हुई। गीत के संबंध में दादा कहा करते थे कि गीत ही इस लोक का श्रृंगार है। वैसे भी हिंदी गीतों का इतिहास निरंतर अपने अस्तित्व के लिए प्रयत्नशीलता का लगातार अपनी शिनाख्त के लिए संघर्षशीलता का इतिहास रहा है। साहित्य का कदाचित यही एकमात्र ऐसा प्राचीन रूप रहा है जो उत्सवधर्मी आंदोलनों से प्रायः नहीं जुड़ा। गीत के कारण दादा अपने आपको राजनीतिकरण का औजार कभी बनने नहीं दिया। गीत चूंकि एक विशिष्ट क्षण की विशिष्ट रचना प्रक्रिया है।दादा ने प्रचलित लीक से हटकर अपने सौंदर्यबोध और जीवनानुभूतियों को अपने शिल्पिक वैशिष्ट्य के साथ नवगीतों को अभिव्यक्ति दी। ग्रामीण जीवन का सीधा अनुभव और खटिया, कथरी,गोरसी,रौनिया, अमसुरहा भाजी जैसे शब्दकोशों का जबरदस्त जुगाड़ था दादा के पास। गीतों के माध्यम से आज के परिवेश को उभारने वाले यशस्वी गीतकार कवि दादा श्री नारायण लाल परमार जी को याद करते हुए कोटि-कोटि प्रणाम। दादा का आशीर्वाद हम सब पर बना रहे और हम सब ऐसी लिखते पढ़ते रहें।
– डुमन लाल ध्रुव