विश्व हिंदी दिवस पर संगोष्ठी एवं काव्य पाठ संपन्न
(छत्तीसगढ़ मित्र एवं संकेत का संयुक्त आयोजन)
वैभव प्रकाशन पीसी सिटी रायपुर में छत्तीसगढ़ मित्र एवं संकेत साहित्य समिति के संयुक्त तत्वावधान में
डॉ.चितरंजन कर के मुख्य आतिथ्य ,जसवंत क्लाडियस की अध्यक्षता एवं गिरीश पंकज ,अशोक तिवारी तथा डॉ.जे.के.डागर के विशिष्ट आतिथ्य में विश्व हिंदी दिवस पर ‘हिंदी की दुनिया और दुनिया की हिंदी’ विषय पर संगोष्ठी एवं काव्य पाठ का आयोजन किया गया। इस अवसर पर डॉ.सुशील त्रिवेदी, डॉ.राजकुमार बेहार, डॉ.जे.आर. सोनी ,गणेश झा एवं जे.आर.बाघमारे विशेष रूप से उपस्थित रहे। माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण के पश्चात अतिथियों का स्वागत डॉ माणिक विश्वकर्मा नवरंग, विजय मिश्रा ‘अमित’, रवीन्द्र सरकार एवं डॉ सुधीर शर्मा ने किया। कार्यक्रम के प्रथम सत्र संगोष्ठी में विषय की प्रस्तावना देते हुए छत्तीसगढ़ मित्र के प्रबंध संपादक डॉ. सुधीर शर्मा ने कहा कि आज हिंदी की दुनिया सौ से अधिक देशों में फैली हुई है। दो सौ करोड़ लोग हिंदी को बोलते और समझते हैं। कार्यक्रम संचालक संकेत साहित्य समिति के संस्थापक एवं प्रांतीय अध्यक्ष डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’ ने हिंदी को प्रगल्भ भाषा निरुपित करते हुए कहा कि इसमें किसी भी विषयवस्तु को अभिव्यक्त करने एवं विभिन्न भाषाओं को ग्रहण करने की अपार क्षमता मौजूद है । विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पंकज ने कहा कि 27 देशों में हिंदी की पत्रकारिता चल रही है। सिनेमा, मीडिया, इंटरनेट और सोशल मीडिया ने हिंदी की दुनिया ही बदल दी है।समारोह के अध्यक्ष और अंतरराष्ट्रीय खेल पत्रकार जसवंत क्लाडियस ने कहा कि खेलों की कमेंट्री ने हिंदी को एक अरब से अधिक श्रोता दिए हैं। रवि चतुर्वेदी, सुशील दोषी और जसवंत सिंह जैसे लोगों ने खेलों के माध्यम से हिंदी को रेडियो से अंतरराष्ट्रीय बना दिया। आज हिंदी में खेल पत्रकारिता अत्यंत समृद्ध है। डॉ.सुशील त्रिवेदी ने विश्व बाज़ार हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता पर संतोष व्यक्त किया। डॉ.जे.आर.सोनी ने हिंदी की दुनिया और दुनिया की हिंदी का रोचक चित्रण किया। डॉ.कल्पना मिश्रा ने भारत में हिंदी की कार्यप्रणाली पर विचार व्यक्त किया। मुख्य अतिथि डॉ.चितरंजन कर ने कहा कि हिंदी ने विश्व को वसुधैव कुटुंबकम की दृष्टि से देखा। हिन्दी की दृष्टि केवल भारत की नहीं समूचे विश्व की है। उसने सारी भाषाओं को आत्मसात किया है। हिंदी के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि जन- जन को जो जोड़ सके वो हिंदी है।वैमनस्य को जो तोड़ सके वो हिंदी है। द्वितीय सत्र में काव्यपाठ करने वाले रचनाकारों में डॉ.चितरंजन कर ,गिरिश पंकज , डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’, सुरेन्द्र रावल ,डॉ.सुधीर शर्मा, डॉ.जे.के.डागर,पल्लवी झा, डॉ.रविन्द्र सरकार , राजेन्द्र ओझा, छबिलाल सोनी, विजय मिश्रा’अमित’, अंबर शुक्ला ‘अंबरीश’ ,डॉ.सी.एल.साहू ,श्रवण चोरनेले, सुषमा पटेल ,डॉ.रामकुमार बेहार ,चेतन भारती एवं डॉ.जे.आर.सोनी के नाम प्रमुख हैं। पढ़ी गई रचनाओं के कुछ अंश बानगी के तौर पर –
* जितनी बार तुम्हें देखा है
तुम हर बार नये लगते हो
मन के भीतर रहते हो तुम
क्यों फिर जुदा हुए लगते हो
डॉ.चितरंजन कर
* जिसे खुसरो ने दुलराया, कबीरा ने जिसे पाला
जो तुलसी के यहाँ विकसी, जिसे रसखान ने ढाला
मोहम्मद जायसी की है ये, रहिमन की धरोहर है
ये हिंदी ओढ़ कर बैठी है, उर्दू का भी दोशाला।
गिरीश पंकज
* हिंदी पढ़ने और लिखने की
जनमानस में जिज्ञासा हो
एक हमें गर रहना है तो
एक धर्म हो एक भाषा हो
डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’
•मेरे घर के भीतर है/अनेक घर/गौरैया, छिपकली, चूहे और न जाने कितने/मेरे घर से हैं सुंदर/ उनके घर
डॉ.सुधीर शर्मा
* भोर से भोर तक
छोर से छोर तक
शोर ही शोर है
शोर ही शोर है
डा. रामकुमार बेहार
* बाहर देखो कौन पड़ा है ।
चौराहे परमौन खडा है
राहगीरों को मार्ग दिखाता,
भूले भटके को राह दिखाता।
सत्य अहिंसा पाठ पढ़ाता।
बाहर देखो कौन पडा है।
चौराहे पर मौन खडा है।।
डॉ.जे.आर.सोनी
* मैने देखे हैं, अंधी गहराइयों वाली खाइयों के संधिपत्र पर हिमाच्छादित शैल शिखरों के लज्जास्पद हस्ताक्षर।मैने देखा है हिमालय से सागर तक फैला विशाल रेगिस्तान।
सुरेन्द्र रावल
* इस जीवन में चलो ढूंढ कर खुशियां कोई लाएं ,
गम के नगमें सभी भुलाकर गीत खुशी के गाएं ।
डॉ जेके डागर
* आओ सब मिलकर,
अपनी हिंदी माँ को
जिसने हमें शिखर पर पहुँचाया
हम भी उसे हर माथे पर
अपनी फलकों पर बिठाएँ
उसे अपनाएँ
डॉ.सी.एल.साहू
* हिंदी भाषा देश की,जन-जन की पहचान।
गर्व करें हम भारती,रखकर उसका मान।।
सहज सरल भाषा यही,मीठी इसकी धार।
अलंकार रस छंद से,करती है श्रृंगार।।
पल्लवी झा (रूमा)
* हिंदी देश की आन है, बान है, शान है।
राष्ट्र की आवाज हिंदी में निकले ये जो मधुर तान है।
डॉ रविंद्र नाथ सरकार
* ओजस्विनी अनूठी है, मानस में सजती है,
रामायण पंक्तियों-सी, हिन्दी हमें प्यारी है।
भारती की महिमा है, काश्मीर की गरिमा है
संस्कृत की लाडली से, सजी फुलवारी है।
सुषमा प्रेम पटेल
•मुझमें अभी बहुत जान है दोस्तों।
यह तो थोड़ी सी उड़ान है दोस्तों।
सपने सारे बिखर गए है फिर भी,
जीने का अभी अरमान है दोस्तों।
के.पी.राठौर
* तुमसे दूर खाता शहर की धूल,
तुम्हें भूलता जा रहा हूं पर लौटूंगा मां,
धीरज रखना ,मिर्च की चटनी
अंगाकर रोटी संजोय रखना।
विजय मिश्रा ‘अमित’
* मेरी कल्पना के गांव में ।
सीधी सरल हो हर गली ।
जहां सबको चैनों सुकूँ मिले ।
हर राही को लागे भली ।
छबिलाल सोनी
* दीवार उसकी नहीं थी / उपले उसके थे
सूख चूके उपलों के साथ/ कुछ चूना भी आया,
रेत भी आई /सीमेंट भी आया।
इन्हीं आती हुई / चुटकी भर रेत और सीमेंट से,
बनती जा रही थी दीवार।
राजेन्द्र ओझा
* उठो युवा मन जागो अब तो,
हर एक दिल जगाओ तुम।
आज ससय के साथ खड़े हो,
बस आगे बढ़ जाओ तुम।
श्रवण चोरनेले
कार्यक्रम के अंत में डॉ.सुधार शर्मा ने आमंत्रित अतिथियों एवं रचनाकारों के प्रति आभार व्यक्त किया।