स्मृति शेष पवन दीवान अब केवल अपनी कविताओं में मिलेंगे

(आलेख – स्वराज करुण )
देखते ही देखते आज नौ साल पूरे हो गए. वह 2मार्च 2016 की तारीख़ थी,जब वे इस दुनिया को हमेशा के लिए छोड़ गए. लेकिन लगता है कि छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय संत कवि पवन दीवान आज भी हमारे बीच हैं. उनकी उन्मुक्त हँसी के साथ उनका यह सौम्य चेहरा आज भी हमारी आँखों में तैरता रहता है।
इस हँसते -मुस्कुराते चेहरे के पीछे देश और दुनिया और पीड़ित मानवता के लिए छुपी उनकी गहरी संवेदनाएं कविताओं में ढलकर वर्षों तक समाज को उद्वेलित करती रहीं , किसानों और मज़दूरों का दर्द उनके हॄदय की गहराइयों से निकलकर गीतों के रूप में चारों दिशाओं में गूंजता रहा। उनकी रचनाओं में और उनकी वाणी में छत्तीसगढ़ के करोड़ों लोगों की भावनाओं की प्रतिध्वनियां हम सुन सकते थे।
अफ़सोस कि अब वह इस भौतिक संसार में नहीं हैं ,लेकिन लगता है कि अभी -अभी तो उनसे मुलाकात हुई थी और उनका आशीर्वाद हमें मिला था। हो सकता है कि कुछ दिनों बाद फिर कहीं किसी कार्यक्रम में उनसे भेंट हो जाए या अपने सहज -सरल आत्मीय स्नेह के साथ वह फिर किसी दिन हमें आशीष देने स्वयं आ जाएं । लेकिन यथार्थ यही है कि अब वह हमें केवल अपनी कविताओं में और अपने भागवत प्रवचनों की रिकॉर्डेड वीडियो छवियों में मिलेंगे ।
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के प्रखर नेता संत कवि पवन दीवान जी को आज उनकी पांचवीं पुण्य तिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि । उनका जन्म एक जनवरी 1945 को रायपुर जिले के राजिम के पास ग्राम किरवई में हुआ था । निधन 2 मार्च 2016 को गुरुग्राम (हरियाणा ) के एक अस्पताल में हुआ। वह छत्तीसगढ़ी ,हिन्दी ,संस्कृत और अंग्रेजी भाषाओं के प्रखर वक्ता थे। उन्होंने महानदी के किनारे छत्तीसगढ़ की तीर्थ नगरी राजिम से ‘अंतरिक्ष’ ,’बिम्ब’ और ‘ महानदी ‘ नामक साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन किया ।दीवान जी लम्बे समय तक राजिम स्थित संस्कृत विद्यापीठ के प्राचार्य भी रहे।
इसके अलावा वह वर्ष 1977-78 में राजिम से विधायक बने और तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार के जेल मंत्री रहे । वर्ष 1991 में दीवान जी महासमुन्द से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद उन्हें गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था । दीवान जी छत्तीसगढ़ के गाँव -गाँव में भागवत प्रवचनकर्ता के रूप में काफी लोकप्रिय थे। उनका आध्यात्मिक नाम स्वामी अमृतानन्द सरस्वती था। वह छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के प्रमुख सूत्रधारों में से एक थे । स्वर्गीय श्री दीवान डॉ., खूबचन्द बघेल द्वारा स्थापित छत्तीसगढ़ भातृसंघ के भी अध्यक्ष रहे । राजनीति में रहने के बावज़ूद उनकी पहचान मुख्य रूप से एक आध्यात्मिक सन्त ,विद्वान भागवत प्रवचनकर्ता और हिन्दी तथा छत्तीसगढ़ी के लोकप्रिय कवि के रूप में आजीवन बनी रही । उनकी प्रकाशित पुस्तकों में कविता संग्रह ‘मेरा हर स्वर इसका पूजन ‘ , और ‘अम्बर का आशीष ‘ उल्लेखनीय हैं।
संत कवि की पुण्य स्मृतियों को प्रणाम करते हुए यहाँ प्रस्तुत है उनका लगभग 47 वर्ष पुराना एक गीत जिसमें मानवीय संवेदनाओं के साथ देश के किसानों ,मजदूरों और गरीबों के दर्द और कठिन जीवन -संघर्ष की अभिव्यक्ति है और एक गहरा जीवन -दर्शन भी है ।
गति ही आज लगाम हो गयी !
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सुबह चले थे किस पड़ाव से .
चलते -चलते शाम हो गयी ,
माया की बस्ती में आकर
यह आत्मा बदनाम हो गयी !
जीवन का जहाज डूबा है
मगर भरे सागर में ,
प्यास छलकती ही रहती है
माटी की गागर में !
ठहर गए साँसों के घोड़े
गति ही आज लगाम हो गयी !
सुबह चले थे किस पड़ाव से ,
चलते -चलते शाम हो गयी !
मेरे सपनों के कस्बे में
एक गरीब किसान रहता था ,
अपनी नन्ही सी गुड़िया से
रोटी की भाषा कहता था !
उसका घर जल गया भूख से ,
सब खेती नीलाम हो गयी ,
सुबह चले थे किस पड़ाव से,
चलते-चलते शाम हो गयी !
बच्चों को बहलाने खातिर
केवल भाषण का बाजा है ,
महल खंडहर के नक्शे हैं ,
रानी है न राजा है !
कुछ मकान ही देश बन गए
सब जनता गुमनाम हो गयी ,
सुबह चले थे किस पड़ाव से ,
चलते -चलते शाम हो गयी !
— पवन दीवान
(छत्तीसगढ़ के भाटापारा कस्बे से सन 1974 में प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ‘अस्तित्व ‘ से साभार)
—स्वराज करुण