March 9, 2025

कुछ रिश्ते बिछड़ कर भी छूट जाते है …

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कुछ रिश्ते बिछड़ कर भी
छूट जाते है सीने में इस तरह
सूरज डूबने के बाद भी
लाल रंग रिसता रहता है देर तक
आसमाँ में जिस तरह ,…/
तस्वीर हटने के बावजूद
दीवार पर बिरहन निशान
रह जाते है जिस तरह ,……/

चाँद की विदाई बाद भी
भोर की ओस सिसकती रहती
दूब पर देर तक जिस तरह ,…../
बारिश थम जाने पर भी
उदास बूंदे झूलती है छज्जे ,
शाखों पर बेसबब जिस तरह ,./

कुछ रिश्ते बिछड़ कर भी
“खलिश” बन छूटते है सीने में
इस तरह …..

फूल विसर्जन बाद भी
महकती रहती है अंजुरी जिस तरह….
कारवाँ गुजरने के बाद
गुबार फ़िजा में देर तक जिस तरह…/
मेहंदी धुलकर भी हथेली पर
रंगत छोड़ जाती है जिस तरह…./

ढहता खंडहर किस्सें
सुनाता है सदियों जिस तरह /
कुछ रिश्तें रुख़सत के बाद भी
एक ज़माना छोड़ जाते है
ज़ेहन में इस तरह ../

कंकर डूबकर लहरों को
हिलोरता रहता देर तक जिस तरह ../
तुरपाइयों से झलकते है
मरम्मत के निशा जिस तरह ../
बुझकर भी आग चटकता
धुँआ उठाती देर तक जिस तरह ../

बिछड़कर भी कुछ रिश्तें
जिस्म में छूट जाते है इस कदर /

आँखों के समंदर हिलक-हिलक
खाली हुए तकिए पर ,
घुटी हिचकियों का नमक
सीजता रहा रात भर जिस तरह…/
बेज़ान ‘ठूंठ’ सुनाता है कहानी
लहलहाते दरख़्त की जिस तरह /
सोखकर सैलाब तमाम नमी
सतह पर रह ही जाती जिस तरह ../

कुछ रिश्ते बिछड़ कर भी
रिहाइश रखते है सीने में इस तरह ….

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Madhu — writer at film writer

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