“काँटों भरी डगर है आज”
काँटों भरी डगर है आज
शामत भरा सफ़र है आज
मेघ घनेरे छाए हैं
अँधियारों के साए हैं
उम्मीदों के दीप जला
पल में दिल की थकन मिटा
बदलेंगी विक्षिप्त हवाएँ
जल्दी होंगी फलित दुआएँ
कब तक काल करेगा तांडव
कब तक मौन रहेंगे माधव
निश्चित कौंतेय गांडीव उठेगा
जल्द मिटेगी दुख की लीक
बस विश्वास बनाए रखना
सुख की आस लगाए रखना
बुझ न पाए आशा दीप
प्रतिपल ओट लगाए रखना
जल्द छटेंगे काले बादल
होंगी ख़ुशियों की बरसातें
फिर से जीवन हरियाएगा
उज्जवल दिन दमकेंगी रातें
फिर से गले मिलेंगे अपने
स्वर्णिम होंगे सारे सपने
काल का कब्ज़ा है साँसों पर
बस इतनी सी बात समझ ले
तन्हा रह एहतियात बरत ले।
कृष्णा वर्मा
टोरेंटो अमेरिका से