अस्तित्व
सुनो पृथ्वी मैं डूबने नहीं दूँगा तुम्हें,
या तुम्हारे गर्भ में पलते सनातन के अस्तित्व को,
विभिन्न रूपों को धर मैं फ़िर-फ़िर तुम्हारी कोख़ से आऊँगा ही।
तुम्हारा ही स्तनपान कर तुम्हारी गोद में पलते
सनातन की रक्षार्थ अपना हाथ बढ़ाऊँगा ही।।
आज जो मेरे सनातन कर्म और स्वरूप को पाश्चात्य के पाँव तले दबा रहे।
उसी सनातन सभ्यता में राम,कृष्ण और बुद्ध का रूप धर फिर नयी रचना कर जाऊँगा ही।।
लेकिन हाँ,तब तक ये पृथ्वी पाश्यात्य में जीते,
आधारहीन मनुष्यों के पश्चाताप के आँसुओं में डूब चुकी होगी।
तुम्हें स्तनपान कराने वाली पृथ्वी के स्तन की सभी धारायें सूख चुकी होंगी।।
उनके वैचारिक पतन से आहत पृथ्वी,
उनके स्वयं भू विद्वान होने का अहं चकनाचूर कर देगी।
सनातन संस्कृति के गौरवशाली इतिहास को नकारते वैसों को अपने मातृत्व के गुरुत्वाकर्षण से कोसों दूर कर देगी।।
सभ्यता और संस्कृति युक्त जीवों के रक्षार्थ ये पृथ्वी अपने मातृत्व की करुण पुकार मुझ तक पहुंचाएगी।
सहस्त्रों वर्षों से साधनारत जीव और प्रकृति के रक्षार्थ मेरे पुनः अवतरण की प्रार्थना लिए मुझ तक आयेगी।।
योग निद्रा से जगा मैं फिर तुम्हें पथभ्रष्ट दिशा में बढ़ते और पृथ्वी की वेदना देख चिंतित हो जाऊँगा।
पृथ्वी की वेदना को हरने और सनातन जीव की चेतना के पुनर्जागरण के संकल्प के साथ धरा पर फ़िर अवतरित हो आऊँगा।।
वरुण