27 मई 2021,डाँ. बलदेव की 79वें जयंती के अवसर पर विशेष
संगिनी के प्रति
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(डाॅ.बलदेव)
जिनको आकार दिया है तुमने
वे नदी बने, पहाड़ बने
नदी सदा-नीरा
पहाड़
सदावर्त हरा-भरा
अविराम , घाटियों से गूंजता हो
*
जीवन का गान
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नदी – पिलाएं शीतल जल
और पहाड़
पहाड़ खिलाये मीठे फल
(मद्रास से लोटते वक्त)
स्वाति और ऋतु के लिए
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बहुरानी दीप ऐसे बालना
शिशु की खिलखिलाहट से
हो आन्दोलित पालना
*
नाक की फूली ज्यों नखत ज्योति
माथे की बिन्दिया
ज्यों ज्योतित हो दीप शिखा
कर्णफूल कानों की
खिला हो ज्यों पारिजात
होठों पर स्मिति जैसे
ज्योति गीत हो लिखा
बच्चों सा हमको भी पालना
बहुरानी दीप ऐसे बालना
*
अनियारे नयनों में
एक बिम्ब ही उभरे
प्रियतम हो भले दूर
अन्तस में वे ही उतरें
बच्चे हों गोदी में
नूपुर के रुनझुन से आंगन गूंजे
पूरब की लाली सी
मांथ की सिन्दूर दमके
पौधों में पानी भी डालना
बहुरानी दीप ऐसे बालना
*
बलदेव
16/10/2006
बच्चों से
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मेरे बच्चो भूल भी जाओं मुझको
अच्छा नहीं सोते वक्त मुझे याद करना
मैं हूँ भूत याद करोगे तो आऊंगा
कुछ असंभव नहीं मुझको
हर कहीं गति है मेरी
अपने कंधे पर बैठा
सैर परी देश की कराऊँगा
पल में नया सूट पहनाऊँगा
तुम्हारी मुट्ठी में पैसे भर जाऊँगा
फूलों का गुच्छा
सिरहाने रख जाऊँगा
कुछ नहीं असंभव मुझको
लेकिन सोचो
सपने भी कहीं सच होंगे
सोचो नींद टूटेगी
और मैं पकड़ नहीं आऊँगा
स्मृतियों में लहराऊँगा
झूठा ही कहलाऊँगा
इसलिए भूखे रहकर भी
सोने की आदत डालो
दुनिया बहुत बड़ी है
जहाँ से मेरी यात्रा खत्म हुई
वहीं से तुम्हें शुरू करना है।
बलदेव