ठहाकों के शहंशाह- “स्मृति शेष संत, कवि पवन दीवान”
वीरेन्द्र ' सरल ' ठहाकों के शहंशाह लेख का यह शीर्षक पढ़ने से शायद आपको यह लगे कि किसी कॉमेडी...
वीरेन्द्र ' सरल ' ठहाकों के शहंशाह लेख का यह शीर्षक पढ़ने से शायद आपको यह लगे कि किसी कॉमेडी...
सब उम्मीदें टूट गई तो आशाऐं भी रूठ गई तो दुख ने आकर घेर लिया था सबने ही मुँह फेर...
जैसा कि एक कवि कहता है कि मातृभाषा में ही लिखी जा सकती है कविता तो मातृभाषा को याद रखने...
बम फटने का दु:ख तो होता है पर उतना ज़्यादा नहीं,चाय के — ठंडे होने के दु:ख जितना। कहीं देखकर...