नई कहानी : बांदरसिंदरी के प्रेत
वह दूर से दिख रहा मोड़ ही था। कच्चे रास्ते से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर। पीला मरियल सा प्रकाश अंधेरा दूर करने कीअसफल कोशिश कर रहा था। “बस , साहब दो मिनट बाद ही जगह आ जावेगी। यूं समझो कच्ची कली है। बिल्कुल नई, अछूती।” “अच्छा !,देखते हैं। तेरी बातों ने तो नशा ही उतार दिया। शुक्र है दो बोतल गाड़ी में पड़ी है ।” सुरेंदर बिल्कुल ही धमाल किस्म का आदमी है। “,और देख ,जरा भी तेरी बात ऊपर नीचे हुई तो तेरी बख्शीश नही मिलेगी।सोच समझकर लेकर चलना।” “हाँ, भाई इन्होंने न जाने कितने घाटों की खाक छानी है। इसे कोई अब बेवकूफ नही बना सकता।” सुरेंदर ने गाड़ी चलाते हुए एक हाथ मेरी पीठ पर मारा,” ले ले बेटा तू भी मेरी फिरकी ले ले । पर सच्ची कह रहा हूँ यहां जो मिलता है वह पूरे सूबे में नही मिलेगा। ”
“बस बस साहब जी, यह आ गया ठिकानों। “सामने एक साफ सुथरी दीवार थी जिस पर रंगीन चित्र बणी ठनी और किसी मूंछों वाले घुड़सवार के बने थे। एक कोने में दरवाजा था और पास में खिड़की में से हल्की हल्की संगीत की आवाज आ रही थी। वह उतरकर दो मिनट में आने की बात कहकर अंदर चला गया।
“यहां तक आया है तो तू भी कोई देख ले। एक अनुभव हो जाएगा तुझे भी। ”
मैंने सामने अंधेरे में डूबे घरों को देखा,”देख यार,तू जो कर करले। मैंने होटल जाकर सोना है और सवेरे उठकर निकलना है मुम्बई के लिए। इसीलिए एयरपोर्ट के पास का होटल चुना है।”
“तेरी मर्जी। वरना कोई दरिया के पास आकर भी सूखा रहता है?’ “तू है न खूब जम जमके डुबकी लगा यार बस एकबात का ख्याल रखियो सेफ्टी उपकरण …समझ गया न?”
“अरे यार, कोई नोसिखिया कॉलेज का छोरा हूँ क्या? सब है तू चिंता मत कर। तेरे लिए भी है। बोल करूँ इंतज़ाम ?” उसने आशापूर्ण नेत्रों से मेरी ओर देखा।
मैंने सामने इशारा किया।वह आरहा था। “साहब सब इंतज़ाम हो गया है। अच्छे से तैयार होने को कह आया हूँ।आपके कहे अनुसार। अब कुछ ….” कहकर उसने हाथ खुजाए।
“,ले यह लेजा और बियर पी।” सुरेंदर ने उसके हाथ पर पांच सौ का नोट रखा। वह खुश हो गया। “चलो साहब, फिर मुझसे बोला,”आपके लिए भी इंतजाम हो जाएगा। एकदम फर्स्ट क्लास। नाबालिग ,बस थोड़े पैसे ज्यादा लगेंगे।” ‘कितने “सुरेंदर पर लगता था नशा चढ़ गया था। “इसके रात भर के दो हजार, तो उसके तीन हजार। और माल एकदम चौकस,टॉप क्लास ।” उसने अपनी तरफ से लगभग दुगने दाम बताए थे।क्योकि दो बड़ी गाड़ी वाले साहब थे न। वरना पांच पांच सौ रुपए में यहां हर किस्म की मिलती थी।
“,तू जा,मैं सुबह आ जाऊंगा, ” फिर गाड़ी से उतर वह आगे बढ़ा,रुका,”, तू पक्का नही आ रहा?साले क्या याद करेगा की दोस्त ने जन्नत के दरवाजे पर ला खड़ा किया।”
“अरे नही यार,तेरी जन्नत तुझे ही मुबारक”, और मैंने हंसते हुए गाड़ी मोड़ ली। कोनसे मुझे हिंदी के लेखको की भांति अनुभव करके लिखने के बहाने यह काम करना था। न ही मुझे किसी को हमदर्दी दिखाकर की रुपए पैसे से मदद हो रही है इस कोविड काल में,अपना स्वार्थ सीधा करना था। अभी कल ही कहीं कोई टीवी संपादक भों भों कर रहा था कि सेक्स वर्कर का धंधा बन्द हो गया है कोरोना के चलते। अरे तो, किसका धंधा चमक रहा है सिर्फ श्मशान,एम्बुलैंस, डॉक्टर और मेडिकल और परचूनी वालो के अलावा। हर चीज के दाम तीन गुने कर दिए हैं। आम आदमी वेसे ही मर जाएगा।कमाई है नही और दाम तीन गुने।
होटल ठीकठाक था जगह के हिसाब से। कमरे में पहुंचकर मैं नींद के हवाले।
“चलो अब टीवी बन्द करो और सोने जाओ।सुबह स्कूल जाना है। ” “मम्मी ,थोड़ी देर और टीवी देखने दो न बस ब्रेक तक। बस ” कहते हुए उस मासूम आवाज की कोमलता सब जगह व्याप्त हो गई। वह छोटा बच्चा उसे प्यार से देखता रहा और आठ साल की बच्ची मनोयोग से अपना स्कूल बैग जमाकर उसे बिस्तर पर रख सोने की तैयारी में थी। “अच्छा,अच्छा बस पांच मिनट और।मैं आके देखूँगी की बन्द किया या नही।” “जी बिल्कुल,मैं बन्द कर दूंगी,बिटिया बोली।” फिर कदमों की आहट आई।बीच मे शायद राहदारी थी। और इस पीछे के कमरे का अंदर का दरवाजा खुला। बिल्कुल सामान्य कपड़ों और बिना मेकअप के भी वह सुंदर थी।लंबा कद,गोरा रंग वह पास आई और बिंदास बोली,”कुछ पिया आपने हुजूर।या मेरे हाथ से पिलाऊँ?” उसका यह कहना था की बस सुरेंदर ने उसी की बात मानली। एक नही दो पेग बनाए गए।सोढा और बर्फ के साथ एक छोटा।
कमरा सामान्य से बेहतर था।उसमें जरूरत की चीजें मसलन, चखना,बर्फ,सोडा, सिगरेट सब था।एक दीवार कुछ धार्मिक स्थलों के फोटो भी लगे थे।
“चियर्स” इस खूबसूरत रात के नाम , बातो ही बातो में कब आधी रात हो गई पता नही चला।कई तलाशें,कई आसमान ,चांद पर जाकर पूरी हुई। पर प्यास हर बार बढ़ती जाए। वह अक्षत घट थी। “तुम्हारा गुजारा चल जाता है इतने से?” सिगरेट सुलगाते हुए उसने पूछा।
“क्या साहब, यह बेकार की बात क्यों पूछते हो?कोनसा महाकि तंगी में तुम खजाने भेज दोगे? बोलो?” कहकर उसने बेबाकी से सिगरेट मेरी उंगलियों से ले अपने होटो में दक्ष अंदाज से लगाई। मैंने एक चुस्की ली और गौर से उसे देख मुस्कराकर कहा,”कर भी सकता हूँ मदद ।ऐसी क्या बात है।” वह हँसी, ऐसी हँसी जिसमे चुनोती,दर्द और बेपरवाह अंदाज था मानो कह रही हो कि इन बातों से बहलाने की उम्र तुम्हारी है मेरी नही। “नही,मैं सच कह रहा हूँ। तुम पसन्द आईं मुझे। लगता ही नही मैं बाजार में हूं। मानो एक अलग ही दुनिया तुमने बसा रखी है और उसमें मुझे ले आई हो। तो कुछ तो बनता है। तुम बताओ।”
“साहब ,मेरा नियम है मैं न किसी के बारे में जानना चाहती हूं न बताना। हां यह जरूर है कि जिस चीज के पैसे लिए हैं उसमे पूरी संतुष्टि मिले। कोई शिकायत हो तो बोलो”कहकर उसने सिगरेट की तरफ हाथ बढ़ाया।
“कुछ नही, तुम पहली हो जिसे मैंने इतना रिलेक्स और अपने काम के प्रति गर्व करते देखा है।”
वह शून्य में धुएं के छल्ले बनाती रही,शायद वह व्यंग्य और सत्य की महीन से लाइन पर थी।
“जानते हो औरत सिर्फ औरत होती है। वह बाजारू या घरेलू नही होती।और फर्क यह भी है कि जो काम वह मुफ्त में घर पर पति नाम के जीव के लिए करती हैं। उसे हम पैसे लेकर अपनी मर्जी से करती हैं। और हमे दिन भर खटना नही पड़ता ,कपड़े धोओ, खाना बनाओ। और मिलेगा क्या ठेंगा?” वह हंसी और घूमी मेरी और देखा,चित्ताकर्षक ढंग से मेरे होटो पर होट रखे, बोली “यहां हम ठेंगे पर रखते हैं।” ” बहुत सही कहा।तुम वास्तव में बहुत खास हो। तभी तो तुम्हारे ही पास आता हूँ। ” मैंने भी उसे लिपटा लिया। समय हमारे मध्य बहता रहा,चांदनी बादलो में से बाहर आती और फिर छुप जाती।इस तरह मानो कई जन्म गुजर गए।हम अलग हुए वह अंदर गई। मैंने दीवार घड़ी को देखा रात का तीसरा पहर था पर नींद का नामोनिशान नही था।तभी वह हाथ मे फोन लिए आई बोली, “चलो ,एक काम करो। तुम पसन्द आए मेरे को।”उसके प्यार और खूबसूरती को सोचता सुरेंदर मुस्कराया और अपनी बाहें फैलाई। पर वह मुस्कराते हुए बोली,” यहां से भाग जाओ।” “क्या?” उसे सहलाता सोचता सुरेंदर यह
सुनकर चोंक गया। “क्या ? क्या कहा?’
“मैंने कहा, मेरे सरकार भाग जाओ अभी। तुमसे मुझे भी कुछ महसूस हो रहा है।”
क्या,किंतु,क्यो करते न करते उसने मुझे कपड़ों समेत छत की और धकेल दिया। कमरा वापिस पहले जैसा जमा दिया।
कुछ देर बाद दरवाजे पर दस्तक हुई। फिर हुई।
“खोलो दरवाजा, नही तो तोड़ दिया जाएगा।”
कुछ पलों के बाद, उसने आंख मलते हुए दरवाजा खोला।
तुरन्त दो पुलसिए अंदर आ पूरे कमरे को देख गए। “क्या, चांदनी, क्या हाल है ? कहाँ गया वह बाबू?” काइयां आंखों वाला बोला,जबकि दूसरा पलंग के नीचे देख रहा था।
“क्या साहब,कबका यह सब छोड़ दी हूँ मैं। और आप अभी भी आ जाते हैं।”
काइयां पुलसिया बोला,”एक बड़ी गाड़ी यहां आती देखी तो चले आए पूछताछ करने “।
“अरे साहब, कहाँ है गाड़ी?आपने देखा ही है सब।अब बच्चे जग जाएंगे तो दिक्कत होगी।”
उसे घूरता हुआ थानेदार सिपाही सहित चला गया।
कुछ देर इंतज़ार के बाद जब तसल्ली हो गई तब छत का दरवाजा खुला और सुरेंदर नीचे आया । “तुमने कमाल किया। लोग तो उल्टे फंसाते हैं। तुमने तो दिल जीत लिया।”
“साहब, धंधे वाली हुँ कोई नेता नही जो जुबान से फिर जाऊं।”
“तो सुंदरी,कुछ पिया जाए !अब सारा नशा उतर गया है।”
उसने बर्फ,सोढा,नए ग्लास, नमकीन रखा और खुद कहीं अंदर गई।जब तक एक पैग हुआ वह लौटी साथ मे गर्म गर्म पनीर पकोड़े की प्लेट लिए। “इसके साथ पीने का अलग ही सुरूर है। समझे हुजूर।”
साहेबान,रहती दुनिया तक यह सलीका, चाहे दस प्रतिशत औरतो को ही सही,आता रहेगा और वह बाकी की नब्बे प्रतिशतऔरतों से हमेशा आगे रहेंगी। यह खूबी बहुत कम इंसानों में होती है सही वक्त पर सही बात। वरना अधिकांश तो जिंदगी भर सही बात भी गलत वक़्त पर ही करते आए हैं और उसके परिणाम भी भुगतते आएं हैं।
” चांदनी,तुमने दिल जीत लिया ” उसके खुले बालों को सहलाते हुए सुरेंदर बोला। “वरना तुम चाहती तो उस पुलिस वाले के बहाने मोटी रकम मुझसे खींच लेती।”
वह मुस्कराई, उसे चूमा और उठकर बगल की मेज पर रखा पैग उठाया, ” जिसके साथ हो ,उसे कभी भी धोखा नही देते हम। चाहे साथ एक रात का हो या जीवन भर का।”
उसकी काली ,गहरी आंखों में देखता रहा अपलक और फिर बोला,” अब जब भी आऊंगा तुम्हारे ही पास आऊंगा। तुम बहुत पंसद आई मेरे को। जम गई इस बार बात । चलो अब निकलूंगा।” कहते हुए दो हजार का एक नोट उसे दिया और फिर एक और निकाला और बोला,”यह अच्छे बने रहने के लिए।” वह हँसी, पूरे कमरे में मानो फूल ही फूल बिखर गए ,”क्या साहब मैं धंधे वाली आपको कहाँ से अच्छी औरत लगी? हमको तो बच्चो के स्कूल जाते भी डर लागे की कोई ग्राहक न पहचान ले वहां।”
क्या कहता वह? हर बात भूलकर आया था और कई रंग देखे थे सम्बन्धो के। “तुम्हे नही पता कि तुम में कितनी खूबियाँ हैं। चलो अब निकलता हूँ “।
“आप सुबह तक ठहर सकते हो।कोई दिक्कत नही है।बच्चे सात बजे उठेंगे तब चले जाना।”
औरत औरत में यही फर्क होता है।कुछ होती है जो न जाने किन कुंठाओ में जीती अपनी और साथ मे रहने वाले कि जिंदगी को नरक बना देती हैं। और कुछ ऐसी जो आपके व्यक्तित्व में ,जीवन मे कुछ जोड़ जाती हैं। वह इतनी पावन होती हैं कि उनके सानिध्य में आप अपने को नई दुनिया मे पाते हैं।
“अब चलूंगा ।तुम्हारे घरवाले को सुबह दिक्कत न हो। वह जानता है इस बारे में?”
उसने अपनी बड़ी बड़ी आंखो से मुझे देखा, न जाने क्यों उसकी आँखों में उदासी की हल्की से लहर आई और चली गई।
“वह जो रात आपको लाया था न साहब, वही मेरा मरद है।”
कुछ समय के लिए सुरेंदर ठिठका,फिर उसकी खूबसूरत आँखों मे देखा। “वो क्या है न साहब म्हारे कुल देवता का सदियों से यह श्राप है कि मर्द की कमाई से घर चलायो तो पूरा वंश नष्ट हो जावेलो। तभी हमारे यहां औरतें ही काम करती हैं। सभी घरों में बेटी होने पर जमकर खुशियां मनती थीं।”
“तो मर्द कुछ नही करते? कोई काम धंधा?और भी काम हैं करने के तुम लोगो के लिए।”
“सभी अनपढ़ तो कौन काम देता? मजूरी की कोशिश की तो वहाँ काम भी करो और ठेकेदार को शरीर दो। तो सोचा जब शरीर देना ही है तो अपने घर से अपनी मर्जी और अपने दाम पर क्यो न दें?”
“और घर के मर्द?वह ऐतराज नही करते?क्या करते है वह?”
वह हँसी, दर्द भरी हँसी,” भाई, मर्द, लड़का सब म्ह, लुगाइयों के वास्ते ग्राहक लाते हैं। कई बार महीना हो जाता है ग्राहक नही मिलता तो फाका भी करते हैं। भला हो नई सरकार का जो यह छोटा सा मकान मिल गया।इलाज का कारड मिल गया..। हां ,सोना पड़ा मुफ्त में कुछ के साथ।”
अचानक से सन्नाटा छा गया था। बस बाहर से आती ठंडी हवा बहते बहते कुछ पूछ रही थी। भारी कदमों से उसने बाहर कदम रखा। कुछ रुपए और देने के लिए पर्स निकाला।
“नही साहब, नही …” वह पीछे हटती बोली ,”यह मेहरबानी नही चाहिए। अपनी मेहनत से जो मिलता है वही लेती हूं। आप पहले ही दे चुके। अब और नही।”
डॉ संदीप अवस्थी ,
कथा,आलोचना,दर्शन पर दस
किताबें,देश विदेश से पुरस्कृत
निजी विश्वविद्यालय में शोध निदेशक,राजस्थान ।
मो 7737407061