लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की कविताएं
बाबू जी की शिक्षा…
जब तक मेरे बाबू जी जीवित रहे
मुझे अपने पिता पर सच में बहुत गुमान था
बाबू जी पर मुझे अभिमान था
मुझे अन्नाय के विरुद्ध लड़ना सिखाया था
सत्य के साथ चलना बताया था
सत्य और असत्य के बीच क्या अंतर होता है
इसे भी पहचानना समझाया था
इसी का नतीजा था कि युवावस्था से ही
कहीं भी गलत या किसी पर अत्याचार देखता था
आगा पीछा न देखता था भिड़ जाया करता था
मेरे पिता जी का क्षेत्र के लिए एक अहम किरदार था
बिना किसी स्वार्थ के लोगों के मसले
आसानी से निपटाया करते थे
लोगों के झगड़े सुलझाया करते थे
लोग उनके निष्पक्षता के कायल थे
उनकी बताए बात को लोग मान जाया करते थे
उनके सलाह का सम्मान किया करते थे
उन्हीं के जीवन दर्शन का असर मुझ पर भी हुआ
कहीं पर उल्टा सीधा देखता हूँ
झट उस समस्या के समस्या के समाधान के लिए
बिना परिणाम देखे कूद पड़ता हूँ
और कभी तो नुकसान भी सहता हूँ
लोग प्रायः मुझे समझाते हैं
क्यों किसी के लफड़े में पड़ते हो
बेवजह अपनी टांग अड़ा कर लड़ते हो
आजकल जमाने बिना स्वार्थ के लोग
बाप को भी नहीं पहचानते हैं
मैं कैसे उन्हें समझाऊँ
बाप की दी हुई शिक्षा और सीख के
ही वजह से ही लोग मुझे जानते हैं…
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आप तो बड़े कवि हैं…
आप बड़े कवि हैं
मैं तो नवांकुर हूँ
सृजन की जमीं पर अभी उग रहा हूँ
हालांकि, यदि आपका समर्थन मिल जाए
मेरे साहित्य सृजन को संबल मिल जाएगा
आपके चंद शब्दों की प्रतिक्रिया से
मेरे शब्दों में निखार आएगा
मैं चाहता हूँ कि आप कुछ मुझे मशविरा दें
मेरे सृजन को नई दिशा दें
आप बड़े कवि हैं
मैं तो नवांकुर हूँ
गाँव में पला बढ़ा हूँ,
बस! कुछ लिख रहा हूँ
किसान का बेटा हूँ
अपने कविताओं में लिखता हूँ…
लहलहाती फसलों को देख कर
मेरे बाबू जी बहुत प्रसन्न होते हैं
बाढ़, सूखा, पाला या कोई आपदा आती है
फसल मारी जाती है
हमारे गाँव में भुखमरी हो जाती है
मेरे बाबूजी कर्ज़ चुकाने की चिंता में डूब जाते हैं
जो उन्होंने साहूकार से फसल कट जाने पर
कर्ज़ चुकाने का वादा किया था
आप तो बड़े कवि हैं
मैं तो गाँव के प्राथमिक पाठशाला से पढ़ा लिखा हूँ
बड़ी मुश्किल से बाबूजी ने आगे पढ़ाया लिखाया
मेरे गाँव में अभी भी प्राथमिक शिक्षा से
आगे की पढ़ाई इक्का दुक्का लोग ही कर पाते हैं
शेष लोग उसी खेती किसानी में जीवन बिताते हैं
आप तो बड़े कवि हैं
दुनिया के समसामयिक विषयों पर लिखते हैं
बड़े नेताओं के वक्तव्य पर चर्चा करते हैं
ख़ूब सुर्खियाँ बटोरते हैं
नामी गिरामी लोग आप की प्रसंशा करते हैं
मैं तो गाँव गिराव फसल खेत खलिहान
अशिक्षा, अव्यवस्था, बीमार व किसान
जो धूप, बरसात व जाड़ा सहकर
कड़े परिश्रम से से अन्न उगाते हैं
जिनके बारे में बड़े अधिकारी व नेता
वातानुकूलित कमरे में
बैठ कर नीतियाँ बनाते हैं
ऐसे लोगों को नजदीक से जानता हूँ पहचानता हूँ
इन्हीं लोगों के बीच जीता हूँ
इनके जीवन को शब्दों में महसूस करता हूँ
मैं अपने सृजन में इनके बारे में लिखता हूँ…
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सिर्फ एक शब्द…
कभी कभी हमारे जीवन में सिर्फ एक शब्द
करता है ऐसा अप्रत्याशित चमत्कार
जो हमारे मन मस्तिष्क में व्यापक असर डालता है
जीवन में वो शब्द धीरे धीरे लेना लगता है एक आकार
उसकी आभा और प्रभाव से जीवन हो जाता साकार
हमारी सोच जो संकीर्णता में निहित होती है
उससे निकल कर हमारे मस्तिष्क का होता है परिष्कार
फिर हमारे विचार से छंट जाते हैं अविकार
हमें कितना सुंदर लगने लगता है यह संसार
फिर वही शब्द हमारे जीवन के
सफलता के लिए होता है अविष्कार…
न जाने कितने शब्दों से हमारा नित होता है सामना
उन्हीं में से छिटक कर एकाध शब्द हमें दिखाते हैं आईना
और उसी शब्द के पीछे हम चल पड़ते हैं
जीवन अपना दाँव पर लगा देते हैं
उसी शब्द को अपनी ताकत और हिम्मत बना लेते हैं
कभी तो हम हार जाते हैं
पर कभी उसी शब्द रूपी घोड़े पर सवार हो तेज दौड़ते हैं
उस शब्द को पकड़ कर दिल दिमाग में बिठाए रखते हैं
बार बार गिरते हैं, उठते हैं, फिर साहस बटोरते हैं
अंत में विजय पाकर ही रुकते हैं…
एक शब्द से देश और समाज में आ जाती है क्रांति
मिट जाती हैं अनगिनत भ्रांति
एक शब्द के लिए सिद्धार्थ ने छोड़ दिया था घर बार
ऐश्वर्य और विलासिता से युक्त संसार
एक शब्द के संचरण से जीवन हो गया था शुद्ध
और फिर… सिद्धार्थ बन गए महात्मा बुद्ध…
एक शब्द ‘गुलामी’ को एक दूसरे शब्द
‘आज़ादी’ में बदलने के लिए
बापू ने अपना पूरा जीवन किया समर्पण
तन मन धन सब कुछ किया अर्पण
देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराया
भारतवर्ष को आज़ादी दिलाया
एक शब्द ने बापू का नाम
इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज कराया…
क्या पता ? हमारे जीवन में ऐसा कोई शब्द ले आकर
ईर्ष्या, द्वैष, विषता व अहंकार का हो जाए तिरस्कार
हमारा वास्तव में बदल जाए व्यवहार
हमें भी बुद्ध महावीर गाँधी आदि के शिक्षा का हो ज्ञान
धन दौलत पद का खत्म हो जाए अभिमान
ऐसे किसी शब्द का हमें भी है इंतज़ार
ऐसे शब्द का हमारे मन मस्तिष्क पर हो तीव्र प्रहार
जो हमारी सफलता का खोले द्वार
हमें भी जीवन में ख़ुशियाँ मिले अपार…
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कांटे भरे रास्ते…
आसान सरल सुलभ रास्ते
हर किसी को है भाते
पर कुछ लोग चुनते हैं अलग पथ
कांटों से भरा होता है उनका जीवन रथ
उन्हें आसान रास्ते नहीं सुहाते
इसीलिए वो संघर्षों में रम जाते
जीवन में नई पहचान बनाते
आगे चलकर ऐसे ही इतिहास
के स्वर्णिम पृष्ठों में अपना नाम दर्ज कराते
पर इसके लिए वो अपने भीतर पैदा करते हैं हौसला
उनके दिमाग में जाग्रत होता है जुनून
बिना मंजिल पर पहुँचे उन्हें नहीं मिलता सुकून
उनके भीतर उमड़ता रहता है ज्वालामुखी
उनमें असीम साहस की होती है पराकाष्ठा
वो होते हैं संघर्ष के अतीव पराक्रमी
अर्जुन जैसे ही चिड़िया के आँख पर रहता है लक्ष्य
विषम परिस्थितियों में भी लड़ने के पक्षधर
चलते रहते हैं दिन रात सुबह शाम
उन्हें न लगती है आलस न ही थकान
तभी वो बना पाते हैं अपनी एक पहचान
सच में ऐसे भी कुछ वीर होते हैं इंसान
आगे चलकर कहे जाते हैं महान
सारा जग करता है उनका गुणगान
सर्वत्र पाते हैं वो सम्मान…
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ग़रीबों का आंदोलन…
हाशिये पर जीवन जीवन यापन कर रहे
मजदूर किसान आम जन लोग
जब किसी आंदोलन में कूद पड़ते हैं
तब वह आंदोलन बहुत क्रांतिकारी होता है
जब ग़रीब जुट जाता है उस आंदोलन में
तब वह आंदोलन परिवर्तनकारी होता है
जिस तरह वह ईट गारे को सर पर ढोकर
घर से लाई दोपहर में सूखी रोटियों को खाकर
किसी अमीर के लिए खड़ा करता है महल
एक लोटा पानी और भूजा भेली खाकर
दोपहर तक निराई गुड़ाई और चलाता है हल
सर से पसीने की बूंदें लोटे के पानी में मिलकर
परिश्रम की खाद बनकर फसलें लहलहाती हैं
वही मेहनत जब ग़रीब मजदूर किसान
किसी आंदोलन में लगाता है
आंदोलन सफल होना तय होता है
उसी ग़रीब तबके का
कोई होशियार तेजतर्रार व्यक्ति
उस आंदोलन का नेतृत्व करने लगता है
पर वही ग़रीबों का नेतृत्व कर्ता
जब मशहूर हो जाता है
अमीरी के गोद में पलने लगता है
फिर उसी ग़रीबों मजदूरों किसानों से
उसे आने लगती है घिन
महंगी लक्जरी गाड़ियों में घूमने लगता है
आंदोलन के बल पर वह बड़ा नेता हो जाता है
ग़रीब मजदूर किसान वही खड़ा रह जाता हैं
उसी ग़रीबी में पड़ा रह जाता है…
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ग़रीब घर की लड़कियाँ…
लड़कियाँ होना तो वैसे भी अभिशाप माना जाता है..
लड़कियों को वैसे भी गर्भ में पलने के पहले ही
प्रायः मार दिया जाता है..
उस पर भी यदि लड़की ने ग़रीब घर में जन्म लिया..
तो जैसे उसने सिद्ध महात्मा का श्राप पा लिया..
माँ का जब दूसरे के घर चौका बरतन करने जाना..
तो साथ में जाकर काम में हाथ बटाना..
ऐसे लड़कियों को पढ़ने लिखने के सपने न होते हैं पूरे..
सरकारी प्राइमरी में पाँचवीं के बाद..
पढ़ने के सपने अक्सर रह जाते हैं अधूरे..
हालांकि ये लड़कियाँ भी चाहती हैं उड़ना
ख़्वाबों को चाहती हैं पूरा करना..
पर उन्हें डांट डपट कर बता दी जाती हैं उनकी सीमाएँ..
ऐसे हज़ारों की मृतप्राय हो जाती हैं अभिलाषाएँ..
तुम्हें तो शादी के बाद चूल्हा-चौका ही करना है..
पढ़ लिखकर कहाँ तुम्हें कलेक्टर बनना है..
ग़रीब घर की लड़कियाँ को खेलने कूदने की उम्र में
डाल दी जाती है पैरों में लोहे के जंजीरों की बेड़ियाँ..
घर व घर से बाहर के कामों की जिम्मेदारियाँ..
चौका-बेलन, कटाई-दवाई, झाड़ू-बुहारू..
कंडा-गोबर व न जाने क्या क्या..
चहकने फुदकने के आयु में ही..
अक़्सर उनकी कर दी जाती है शादी..
सृष्टि से मिले सुंदर जीवन की हो जाती है बर्बादी..
क्या समता का दंभ भरने वाले समाज करेगा विचार..
ऐसी ग़रीब घर के लड़कियों पर करेगा उपकार..
उन्हें भी अपना मिलेगा अधिकार..
क्या उनके उड़ने के सपने होंगे साकार..
ख़ुशियों से जीवन निर्वाह का मिलेगा पुरस्कार..
या केवल मंचों के भाषणों तक..
लड़के-लड़कियों के समानता की होगी जय जय कार…
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उक्त मेरी सभी रचनाएँ मौलिक, अप्रसारित व अप्रकाशित हैं।
सादर
लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव
ग्राम-कैतहा, पोस्ट-भवानीपुर
जिला-बस्ती 272124 (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 7355309428