चिड़िया का उसूल (लघु-कथा)
एक थी गुलख़ोर चिड़िया।
उसने दूसरी चिड़ियाओं पर तंज़ कसते हुए कहा,” तुम सब नाहक पेट के लिए इतना मशक्कत करती हो, कभी उड़ कर यहाँ.. तो कभी वहाँ…मैं तो यहीं इस बाग में फूल-पत्ती खाकर पेट भर लेती हूँ…”
“ऐसा मत करो।” एक चिड़िया ने समझाते हुए कहा,”बागवान नाराज हो जाएगा… भगवान ने हमें डैने किस लिए दिए हैं…?थोड़ा-बहुत परिश्रम सबको करना चाहिए…”
“तुम तो कविता करने लगी बहन!” उसने बेतकल्लुफी से कहा,” बागवान को इतनी फुर्सत कहाँ… वह तो खुद फूल तोड़ कर बेच देता है…फिर पैसे जेब में रख कर गायब हो जाता है…”
“वह उसका काम है…” किसी दूसरी ने कहा,” हमें क्या लेना-देना… ”
“मतलब?”
“आदमी जो करे वह जाने,पर हमें तो खाने और पीने की चीजों में फर्क करना चाहिए…”
“मैं समझी नहीं?” वह थोड़ा अकबकायी।
“जिस तरह आँसू पीए नहीं जाते,फूल भी खाए नहीं जाते बहन!”चिड़िया ने साफ़-साफ़ कहा,” हम जानवर थोड़े हैं…”
“तुम भी तो कविता करने लगी…” वह हँसी,” चिड़िया वह क्या जो कविता न करे…”
“कविता नहीं,सच कह रही हूँ, आदमी से पंगा मत लो।”
“क्यों?” वह तल्ख होकर बोली,” यह क्या बात हुई?”
“आदमी ईश्वर के बाद सबसे ताकतवर प्राणी है, कभी-कभी वह ईश्वर की बात भी नहीं मानता,इसलिए उल्टा-सीधा करता है, ईश्वर उसे दंड भी देता है, अभी कोरोना वायरस बनाकर वह भुगत रहा ,पर हम क्यों उसकी चाल चलें?”
“हाँ,हाँ हम क्यों उसकी चाल चलें…” सबने एक मुख होकर कहा।
गुलख़ोर चिड़िया उस समय चुप हो गयी, लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा। सदा की तरह एक दिन वह छुप कर फूल कुतर रही थी कि बागवान की नज़र उस पर पड़ गयी। उसे कटे-फटे फूलों का राज समझ में आ गया।उसने गुलेल चला कर उसे घायल कर दिया। वह लड़खड़ाते हुए उड़कर बगल के बड़े पाकड़ पर जा बैठी। किसी तरह जान बच गयी,तो साँस में साँस आयी। उसे पेट के लिए उड़ान भरती चिड़ियाओं की बातों का मर्म समझ में आ गया। बागवान दूसरी बार निशाना साधता इससे पहले उसने हसरत से आकाश की ओर देखा और दर्द को झटक कर एक लम्बी उड़ान भरी। उसकी उड़ान से मानो अपने आप कविता की पंक्तियाँ झरने लगीं…
चिड़िया उड़ कर जाए/खोज कर दाना खाए।
नदी-ताल में पानी पीए/डैने के बल पर जीए।
संजय कुमार सिंह,
प्रिंसिपल,
पूर्णिया महिला काॅलेज पूर्णिया-854301
9431867283