May 19, 2025

दाऊ रामचन्द्र देशमुख कृत चंदैनी गोंदा के कलाकार श्री विजय दिल्लीवार “वर्तमान” की कलम से….

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“खुमान साव होने का अर्थ”

खुमान साव किसी व्यक्ति का नहीं, वस्तुतः छत्तीसगढ़ी संगीत का नाम है। खुमान साव छत्तीसगढ़ी संगीत की आत्मा भी है और देह भी। खुमान साव के संगीत से पहले हम इस अंचल के खेत -खलिहानों, तीज-त्योहारों- उत्सवों और अन्यान्य अवसरों पर जो सुनते थे,वे सर्वथा पारंपरिक थे और रचनात्मक संगीत से विहीन थे। उन पारंपरिक गीतों को आकाशवाणी रायपुर से भी उसी रूप-गंध के साथ प्रसारित किया जाता था। सुर ताल और माधुर्य के प्रति विशेष आग्रह दिखाई नहीं देता था। उस समय के छत्तीसगढ़ी संगीत को हमारा अभिजात्य वर्ग कतई महत्व नहीं देता था।
चंदैनी-गोंदा के उदय के साथ छत्तीसगढ़ ने एक सर्वथा नयी ताजगी से लबालब, बेहद मीठा, कर्णप्रिय, गुरतुर और आत्मीय सा लगने वाला संगीत सुना। यह वह संगीत था, जिसकी छत्तीसगढ़ ने कल्पना भी नहीं की थी। चंदैनी गोंदा के मंच पर छत्तीसगढ़ के शाश्वत पारंपरिक गीतों को जिस संगीत का श्रृंगार मिला, उससे वह यकायक जीवंत हो उठा तब समझ में आया की छत्तीसगढ़ी लोक गीतों में कितना जीवन है। सोने में सुहागा यह की उस समय के स्वनामधन्य कवियों ने चंदैनी गोंदा को पूरे विश्वास और अपनेपन के साथ अपनी रचनाएं सौंपी। रविशंकर शुक्ल, नारायण लाल परमार, हनुमंत नायडू, पतिराम साव, कोदूराम दलित, ठाकुर प्यारेलाल, भगवती सेन, हरि ठाकुर, दानेश्वर शर्मा, कैलाश तिवारी, मुकुंद कौशल आदि-आदि महत्वपूर्ण रचनाकारों के साथ-साथ उस समय के युवा कवि और हर-दिल-अजीज गायक लक्ष्मण मस्तूरिया आदि के गीतों ने जब खुमान साव का संगीत पाया तो छत्तीसगढ़ की आत्मा को जैसे संजीवनी मिल गई। छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान को अंगड़ाई लेते मैंने स्वयं देखा।
मैंने देखा कि चंदैनी गोंदा के गीत गांव-गांव, गली-गली, शहर-शहर,डहर-डहर, ऐसे गूँजने लगे, जैसे खजाना मिल गया। संझा-बिहनिया रतिहा-दुपहरिया, बेरा लागे न कुबेरा, भईगे चंदैनी गोंदा के गाना ।न कोनो असकटाय ना उकताय। येला कहिथें खुमान साव के संगीत।
मैंने इन गानों को छत्तीसगढ़ के आभिजात्य के गले लगते देखा। सन 1970 71 में खुमान साहू के संगीत के शहद में लिपटे बिहावगीत, सुआ, गौरा, ददरिया, कर्मा, माता-सेवा,जंवारा भजन और तत्कालीन साहित्यकारों के रचे किसानगीत, आस्थागीत, क्रांतिगीत विद्रोहगीत, प्रेमगीत, प्रेरणा गीत, बालगीत, आदि-आदि के तिलस्म के वश में सामान्य से लेकर अभिजात्य तक समान रूप से मदहोश थे। खुमान साव ने हमारे संगीत को नवीन माधुर्य के साथ-साथ अनुशासन भी दिया। लोकवाद्यों का सटीक, रचनात्मक प्रयोग संगीत-जगत को खुमान साव ने ही सिखाया।
चंदैनी गोंदा के कथानक को दाऊ रामचंद देशमुख के सपनों के अनुरूप मंच पर साकार करने में खुमान साव के हैरत-अंगेज, प्रभावी संगीत ने महती भूमिका निभायी।अनुकूल, आत्मीय संगीत ने चंदैनी गोंदा के नयनाभिराम नृत्यों,प्रहसनों और भावुक दृश्यों में प्राण फूंक दिए। खुमान साव को संगीत में जादू पैदा करना आता था।
छत्तीसगढ़ और उसके बाहर भी चंदैनी गोंदा के प्रदर्शनों की भीषण बाढ़ के बीच मुझे याद आता है, सन 1976 में हमारा दिल्ली प्रवास। उस समय देश में एक अकेला दिल्ली दूरदर्शन ही राष्ट्रीय चैनल था हमें वहाँ से बुलावा आया था। छत्तीसगढ़ की किसी संस्था के लिए दूरदर्शन से यह प्रथम आमंत्रण था। लगभग दर्जनभर नृत्यों की रिकॉर्डिंग दिल्ली दूरदर्शन ने की थी। वहां का रिकॉर्डिंग स्टाफ हमारे नृत्य-संगीत से मंत्रमुग्ध था। उन्हें कल्पना भी नहीं थी कि देश के सुदूर छत्तीसगढ़ अंचल की मिट्टी में इतना मनभावन संगीत और नृत्य की फसल भी लहलहाती है।
फिर हमें अशोका होटल के प्रसिद्ध कन्वेंशनल हॉल में प्रस्तुति देने का ऐतिहासिक आमंत्रण मिला। ऐतिहासिक इस अर्थ में कि उस समय तक हाल में सिर्फ लता मंगेशकर का ही कार्यक्रम संभव हो पाया था। लोक-सांस्कृतिक दलों में सिर्फ छत्तीसगढ़ के चंदैनी गोंदा को ही यह दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ था। वहाँ कुछ नामवर राजनीतिक एवं सांस्कृतिक प्रतिनिधियों के अलावा शेष सभी दर्शक विदेशी अतिथि थे।
उस समय हमारे लिए अकल्पनीय सर्व सुविधा युक्त मंच में हमने विदेशियों के समक्ष कार्यक्रम दिया। प्रारंभ से अंत तक वीडियो-रिकॉर्डिंग होती रही। यह भी हमारे लिए उस समय रोमांच पैदा करने वाली बात थी। खुमान साव के संगीत ने 1776 में ही विदेशों की यात्रा कर ली थी।
उसी साल मऊरानीपुर, झाँसी में आयोजित ‘अखिल-भारतीय-लोक सांस्कृतिक सम्मेलन’ में चंदैनी-गोंदा की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को पागल कर दिया था। उस क्षेत्र मैं उससे पहले न ऐसा संगीत सुना गया था, ना ही चेतना को विभोर कर देने वाले ऐसे नृत्य देखे गए थे। दूसरे दिन अखबारों में हमारी प्रस्तुतियों और दाऊजी के साक्षात्कार को प्रमुखता से स्थान मिला था।

बताइए, श्रेय किसको जाता है-

खुमान साव के संगीत को ही न।

अंतहीन यादें ।
“खुमान साव होने के अर्थ” को सीमित शब्दों में समेटना कितना दुष्कर है, यह आप सभी जानते हैं।
मैं और प्रमोद यादव खुमान साव के स्नेह के विशेष भाजक रहे हैं।
हमारी विनम्र, आत्मीय श्रद्धांजलि………

ऊँ शांति! शांति!! शांति!!!

शोकाहत
विजय वर्तमान ‘वीरू’
दिनांक 11-6-2019
रात्रि 11:30 बजे

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