गज़ल
हो रहबर क़ौम का सच्चा तो इज़्ज़त मैं भी करती हूँ
मगर झूठी सियासत से तो नफ़रत मैं भी करती हूँ
उलझ जाऊं किसी से भी ये फ़ितरत है नहीं मेरी
अगर हो बात इज़्ज़त की, हिमाकत मैं भी करती हूँ
ख़ुदा की मेहरबानी है कि मेरे घर में बरक़त है
इसी बाइस गरीबों पर इनायत मैं भी करती हूँ
ज़रूरी ये नहीं बन जाऊँ मैं सूरज ज़माने में
उजालों से मगर सच्ची मुहब्बत मैं भी करती हूँ
पलट के रुख़ कभी करती नहीं जनता की जानिब फिर
अगर सरकार हो ऐसी बग़ावत मैं भी करती हूँ
किसी औरत की आज़ादी निहायत ही ज़रुरी है
मगर रिश्तों के बंधन की हिमायत मैं भी करती हूँ
लता जौनपुरी
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सुखमय विहार
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उत्तर प्रदेश
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