शत-शत नमन सुशील गौतम जी
आज सुशील गौतम जी के बेटे ने यह दुखद खबर दी कि ”मेरे पिताजी श्री सुशील कुमार गौतम अब हमारे बीच नहीं रहे, मैं आपको इस बात की सूचना देना चाहता हूँ कि उनका कल ही स्वर्गवास हो गया।” 22 अक्टूबर 1945 में जन्मे सुशील गौतम जी मूलतः इलाहाबाद के थे । वहीं उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। रायपुर में उनके पिता जी ने खादी भंडार खोला था इसलिए वे अक्सर रायपुर आया करते थे। आज नहीं, वर्षों से यह दुकान छोटापारा में स्थित है। जब कभी भी गौतम जी रायपुर आते थे तो उनसे मिलने मैं खादी भंडार जाता और घंटों बैठकर साहित्यिक विषयों और खादी की दुर्दशा पर भी उनसे बातचीत होती। वह अपने परिवार के साथ फिलहाल फरीदाबाद में रह रहे थे । मेरे प्रति उनके मन मे बहुत स्नेह था। जब कभी मैं दिल्ली जाऊं तो वे मिलने दिल्ली आया करते थे। 2019 में विश्व पुस्तक मेले में उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक प्रकाशित हुई और वही लोकार्पण हुई । ‘प्रेम कथा : रति -जिन्ना’। वे सपरिवार पुस्तक मेले में पधारे थे । जैसे ही मैं अपने मित्र यश ओबेरॉय के साथ उनके पास ज्ञानपीठ के स्टॉल पहुंचा, तो उन्होंने पूरे उत्साह के साथ अपना उपन्यास मुझे दिखाया । यह उपन्यास जब वे लिख रहे थे तो उसका एक अंश मुझे पढ़ने भी दिया था। जिन्ना के जीवन पर इतनी प्रामाणिक किताब हिंदी साहित्य को वे दे कर गए हैं। दुर्भाग्य हमारी हिंदी आलोचना का है कि ऐसी महत्वपूर्ण किताब पर कहीं कोई चर्चा नहीं हुई । ज्ञानपीठ ने उनकी यह किताब प्रकाशित तो की मगर उसकी एक भी प्रति मेरे पास इसलिए नहीं है कि जब यह पुस्तक मेले में छप कर आई तब केवल दिखावे के लिए ही कुछ प्रतियां पहुँची थी। उस पर कुछ काम भी बाकी था। गौतमजी ने मुझसे कहा कि आप की प्रति बाद में भेज दी जाएगी । गौतम जी ने ज्ञानपीठ को मेरा पता भी भेजा लेकिन उसके बाद किताब नहीं मिली तो नहीं मिली। गौतम जी स्वभाव से लेखक थे । यह और बात है कि उन्होंने कम लिखा, लेकिन जितना भी लिखा, बहुत अच्छा लिखा। उन्होंने छत्तीसगढ़ पर भी एक महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी थी। बाद में ‘वृत्तचित्र निर्माण और फ़िल्म लेखन ‘ पर भी एक पुस्तक लिखी जो प्रकाशन विभाग से प्रकाशित हो कर चर्चित हुई थी। गौतम जी के दिमाग में दो उपन्यासो के प्लाट भी थे जिसे वे लिखना चाहते थे लेकिन काल को कुछ और ही मंजूर था। वे कहते थे कि “सोचता हूँ, ठीक ठाक चला तो दो तीन उपन्यास लिखूँ। फिर सोचता हूँ व्यर्थ स्वप्न देख रहा हूँ। हिंदी में पढ़ने वाले ही नहीं हैं।” स्मृतियों में दर्ज हों उनके उपन्यास उनके साथ ही चले गए। लेकिन यह हिंदी साहित्य का सौभाग्य है रति जिन्ना जैसा उपन्यास हमेशा-हमेशा के लिए विद्यमान रहेगा।
वे एक सुलझे हुए विचारक थे। यायावर किस्म के लेखक थे। इसी कारण उन्होंने कुछ विदेश यात्राएं भी की। गौतम जी के पास स्मृतियों का बड़ा खजाना था। वह यायावरी प्रकृति के व्यक्ति थे । देश दुनिया को जानने और उस पर डॉक्यूमेंट्री बनाने उन्हें महारत हासिल थी । वे डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए सुदूर गांव तक की यात्रा करते थे। उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए अनेक वृत्तचित्र बनाए। लेकिन अब यह सब एक इतिहास हो गया है। मैं कह सकता हूँ कि मैंने अपना एक अग्रज लेखक खो दिया । साहित्य की दुनिया में न जाने कितने माफिया भरे पड़े हैं। उनके बीच रहते हुए गौतम जी जैसे लोग एकांत साधना एक कर रहे थे । कभी-कभार उनके लेख विभिन्न पत्रिकाओं में पढ़ने को मिल जाते थे । और जब से वह फेसबुक में सक्रिय हुए तो वहां भी उनके विचार हम सब पढ़ते थे। मेरे अनेक विचारों से वे सहमत रहते थे मगर कभी-कभी कुछ बातें जब उन्हें पसंद नहीं आती थी तो वह विनम्रता पूर्वक उसका प्रतिकार भी करते थे। लेकिन फेसबुक पर नहीं! वे मुझे फोन करते और कहते पंकज जी, आपकी यह बात मुझे जम नहीं रही है। वे उन निकृष्ट लोगों में से नहीं थे, जो फेसबुक मित्र बनकर शत्रुता निभाने का काम करते हैं।
गौतम जी विशुद्ध गांधीवादी लेखक थे । और अंतिम समय तक वे देश और समाज के लिए चिंतित रहे। फेसबुक के माध्यम से उनके अनेक चिंतन समय समय पर सामने आते रहे। जैसे एक बार उन्होंने लिखा, ”यह कहना कितना आसान है कि ये हमसे न होगा। इतना कह आप दुनिया भर के झंझट झमेलों से मुक्त हो जाते हैं। अपनी अकर्मण्यता और उदासीनता को अपनी कमी मान कर या दिखा कर आप तमाम ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं क्षमा करें यह मैं राजनीति या चुनाव के परिप्रेक्ष्य में नहीं कह रहा हूँ। यह व्यक्तिगत पारिवारिक और अड़ोसियो पड़ोसियों के परिप्रेक्ष्य में लिखा। यद्यपि बड़ी संख्या ऐसे बहादरों की है जो असम्भव भी सम्भव करने पर तुल जाते हैं।”
पिछले महीने उन्होंने लिखा था कि ”परिवार या मित्रों के देहांत पर लोग फेसबुक पर सूचना देते हैं। श्रद्धांजली भी; यह अच्छा है। आपकी कठिन घड़ी में हम आपके साथ हैं यह संदेश लोगों को थोड़ी बहुत राहत दे देता है। पर लगातार ऐसी दुःखद सूचनाएँ तमाम लोगों के मन में निराशाभी उत्पन्न करती हैं मनोबल पर भी असर डालती हैं। दोंनो स्थितियों के बीच उचित अनुचित तय कर पाना सम्भव नहीं।” उनकी बात बहुत सही थी, लेकिन व्यावहारिक बात यह है कि कोई भला व्यक्ति अगर इस असार-संसार से चला जाय तो उसके बारे में, उसके कामों के बारे में उनके चाहने वालों को सूचना मिलनी ही चाहिए ।यही कारण है कि मुझे गौतम जी के बारे में दो शब्द लिखने पड़े। अब हम गौतम जी के विचारों को पढ़ने से महरूम रह जाएंगे। उनको शत-शत नमन.. शत-शत नमन!!
गिरीश पंकज