‘फ्लाइंग सिख’ मिल्खा सिंह नहीं रहे
‘फ्लाइंग सिख’ मिल्खा सिंह, की जिंदगी की दौड़ कल 92 बरस में खत्म हुई। उनकी जीवनी पढने के बाद लगता है, ट्रेक की दौड़ में एक मिल्खा हमेशा दौड़ता ही रहा था अपने माजी की ओर जहां से उसने कभी जान बचाने के लिए दौड़ लगाई थी। मिल्खा सिंह एक दर्द भरे इंसान ज्यादा लगे। उस दर्द को देखे हुए लोग ल अब लगभग खत्म हो चुके हैं। यह दर्द था विभाजन का। इस विभाजन में मिल्खा सिंह के माता पिता और परिवार उनकी आंखों के सामने मार दिए गए थे !
भारत आये तो शरणार्थी कैम्पों में रहे। ढाबों में बर्तन साफ किये, ट्रेन में बेटिकिट यात्रा के कारण जेल भी गए। पर जान बचाकर भागने की जरूरत उन्हें रोटी देनेवाली थी। एक बार एक गिलास दूध के लिए उन्होंने सेना द्वारा प्रायोजित दौड़ में हिस्सा लिया और बाकी इतिहास है। उनके नाम 75 रेस में जीत दर्ज है। राष्ट्रमंडल खेलों में पहला गोल्ड उनके ही नाम है। टोक्यो में आयोजित 1958 के एशियाई खेलों में उन्होंने 45.8 सेकेंड का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। वे देश की शान हो गए। पर जिस बात मिल्खा सिंह की चर्चा ज्यादा हुई, वह यह कि 1960 के रोम ओलंपिक के फाइनल में 400 मीटर की दौड़ में उन्होंने पीछे मुड़कर क्यों देखा। क्योंकि इतने से ही वे चौथे नम्बर पर आ गए जो शायद पहले पर आते। इस रेस में उन्होंने 45.73 सेकेंड का वक्त लिया जो अगले 40 साल तक नेशनल रिकॉर्ड रहा। दरअसल वे यह देखने मुड़े थे कि उनके पीछे कौन हैं। इस घटना से जिंदगी की रेस में हम सबको यह बात जाननी चाहिए कि एक पल की कीमत क्या होती है।
मिल्खा सिंह व्यवस्था से हमेशा नाखुश रहे जो कि वाजिब भी था। पद्मश्री तो 1959 में मिला था पर 2001 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड भी दिया गया जिसे उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। कोई तुक भी नहीं था लेने का। इतनी देर से यह अवार्ड मिले तो कोई क्या समझे। आज उनके नाम को उनके बेटे जीव मिल्खा सिंह जो गोल्फर हैं और अर्जुन अवार्ड ले चुके हैं, ने आगे बढ़ाया है। उनकी शादी निर्मल जी से हुई थी जो 1960 में वॉलीबॉल की नेशनल टीम की कैप्टन थीं। अभी 5 दिन पहले ही उनकी मौत हुई थी और मिल्खा सिंह भी कल उनके पीछे चले गए। इस चला – चली का कारण कोविड बताया जा रहा है।
मिल्खा सिंह आज़ाद भारत के पहले पहल एथलीट थे जिन्होंने देश को एथलेटिक्स में रुतबा दिलाया। सामाजिक व्यवहार में वे एक जिंदादिल इंसान थे, उनके तमाम किस्से नेट पर पढ़ने को मिल जाएंगे। उनपर बहुत ही शानदार फ़िल्म बनी है, ‘भाग … मिल्खा भाग!’ यह फ़िल्म एक बेहतरीन बायोपिक है। जिन्होंने नहीं देखी है, वे जरूर देखें। इस महान खिलाड़ी की जिंदगी की रेस जिसमें एक दर्द साथ साथ चलता रहा, अब जाकर पूरी हुई। सलाम हीरो !
पियूष कुमार