खानपान की संस्कृति : बोड़ा (सीजन 2021)
प्रस्तुत चित्र में दिख रही चीज हमारे यहां बस्तर और मध्य छत्तीसगढ़ में बोड़ा कहलाती है वहीं उत्तरी छत्तीसगढ़ सरगुजा में यह पुटु कहलाता है। मध्य छत्तीसगढ़ के पूर्वी भाग में इसे पटरस फुटू भी कहते हैं। मानसून के आगमन के साथ ही साल के जंगलों में यह दो महीने तक ही मिल पाता है। शुरू में निकलनेवाला गहरी रंगत का बोड़ा ‘जात बोड़ा’ कहलाता है जबकि महीने भर बाद इसकी ऊपरी परत नरम होने के साथ सफेद होती जाती है तब इसे ‘लाखड़ी बोड़ा’ कहते हैं। लोक में खासकर जनजातीय जीवन मे यह सब्जी के रूप में आरम्भ से रहा है पर अब यह विशेष हो गया है। इसकी विशेषता का आलम ये है कि यह सैकड़ों रुपये किलो की दर से बिकता है।
यह दरअसल एक प्रकार का माईक्रोलोजिकल फंगस है जो साल की जड़ों से उत्सर्जित केमिकल से विकसित होता है और साल की ही गिरी सूखी पत्तियों पर जीवित रहता है। मानसून आगमन पर यह जमीन की ऊपरी सतह पर उभर आता है जिसे कुरेद कर निकाला जाता है। बचपन मे बस्तर में घर के पीछे के सरई के जंगल मे मैंने भी इसे निकाला है। बोड़ा सेलुलोज और कार्बोहाइड्रेट का अच्छा स्रोत है। चूंकि यह मिट्टी से निकलता है, अतः अच्छी सफाई प्रमुख शर्त है। फिर इसे सब्जी की तरह बनाइये। चाहें तो देशी चना मिला सकते हैं। चिकन या मटन मसाला डाल दें तो टेस्ट भिन्न और बेहतर आता है।
जात बोड़ा का सीजन अभी तो शुरू हुआ है। इसके बाद लाखड़ी बोड़ा और फुटू (मशरूम) का आयेगा। सितम्बर लास्ट में ग्रे शेड वाला मोटा मशरूम भी निकलता है जिसका स्वाद सबसे शानदार रहता है। उसे दसरहा फुटू कहते हैं हम। बोड़ा के बारे में तमाम मित्र अच्छे से जानते हैं फिर भी साल में इन्ही दिनों मिलनेवाले इस विशेष डिश के बारे में बताए बिना रहा नही जाता और जैसे भी मिले, खाये बगैर रहा नहीं जाता 😊😊 पियूष कुमार