November 21, 2024

डॉ. किरण मिश्रा की दो कविताएं

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समागम के मूलतत्व

जीवन का ब्रहांड बनता बिगड़ता है
तेरे मेरे गुरुत्वाकर्षण से

जैसे गुजरता है जीवन अनेक चक्रों से
वैसे ही गुजरते हो तुम मुझ से

तुम्हारा गुजरना ऐसा लगता है
मानो ब्रह्याण्ड ने एक लघु चक्र पूरा किया हो

ये चक्रीय गतिविधियां प्रेम का आधार है
हम निरावलम्ब रहते है
जैसे ब्रह्माण्ड में रहते है ग्रह
दोनों और का आकर्षण
जीवन संतुलन को कायम रखता है।

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पगडंडियाँ आशा है

मैं हताश निराश
अहंकारी राजमार्ग से जरा नीचे उतर
नितांत निर्जनता में ,
चल पड़ती हूँ अकेली
पर पगडंडियाँ साथ है

जब तक रास्ता परिपक्व हो
समर्थ नहीं होता
अपनी गोद में सामान भाव से
झाड़ झंखाड़ फूल कांटे लिए
संवाद करती है मुझसे

हमराह बन पथ सुगम सुमन बना
सहज ही पहुंचा देती है
गंतव्य तक
विदाई में आँचल भर देती है
प्यार ,विन्रमता के बीज

जिनसे उगती है फसल
श्रम और पुरुषार्थ की

भाषाहीन शिलालेख में
मानवीय विश्वास की कहानी
सिर्फ पगडंडियाँ ही लिख सकती है।
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