बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’ की तीन लघुकथाएं
बदला
तीस वर्ष पूर्व पंडित जी ने बताया था कि उसकी कुंडली के चौथे घर में मंगल बैठा है, इसलिए वह हमेशा परेशान रहेगा।
आज उसने मंगल ग्रह पर एक नहीं, चार-चार घर बना लिए हैं। इस प्रायोगिक सफलता पर वह ही नहीं, पूरी दुनिया खुश है।
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वास्तविक परवाह
बरसात के कारण बाइक पूरी तरह कीचड़ से लथपथ थी। लेकिन नंबर प्लेट पर कुछ छींटे ही पड़े थे, जिन्हें वह बड़ी तल्लीनता से साफ कर रहा था। यह देखकर एक राहगीर बोल पड़ा, ‘आप नियमों का पालन करने वाले अच्छे चालक हैं, जो नंबर प्लेट साफ रखने का भी ध्यान रखते हैं।’
जवाब मिला, ‘दरअसल, नंबर प्लेट के निचले हिस्से में पार्टी का झंडा बना हुआ है। साथ में मेरा पदनाम भी लिखा है।’
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उल्लंघन
कड़े लॉकडाउन के दिन थे। सुनसान सड़क पर एक दुपहिया सवार तेजी से निकलने की हड़बड़ाहट में था।
‘ऐ रुक, कहां भागा जा रहा है?’
बाइक का ब्रेक चरमराया। युवक उतरा और सिपाही की ओर पीठ करके खड़ा हो गया। तेजी से बोला, ‘सिपाही जी, अपना काम कर लीजिए और मुझे अपने काम के लिए जाने दीजिए। मेरे पास समय नहीं है, गंवाने के लिए।’
‘समय नहीं है…?’ व्यंग्य से हंसते हुए सिपाही ने युवक की कमर के नीचे दो डंडे जमा दिए। कहा, ‘मेरे पास भी वक्त नहीं है, जल्दी से बताओ, कहां जा रहे हो?’
‘आज 27 तारीख है…’
‘तो…? मुझे भी मालूम है,’ सिपाही ने उसकी बात काटते हुए कहा।
‘मैं अपने हर महीने जन्म की तारीख पर रक्तदान करता हूं। आज थोड़ा लेट हो गया, क्योंकि आज मेरा जन्मदिन भी है। अपने जन्मदिन पर अनाथ आश्रम के बच्चों को भोजन करवाता हूं। वहीं था, कि डॉक्टर का फोन आ गया, कहने लगे कि जल्दी से आ जाओ, इमरजेंसी है। इसलिए भागा जा रहा हूं।’
सिपाही को अब भी शक था, उसने पूछा, ‘तुम्हारा रक्त समूह क्या है?’
‘ओ निगेटिव… बहुत कम पाया जाता है…’ कहते हुए वह तेजी से बाइक की ओर बढ़ा।
पास खड़े थानेदार की आवाज सुनाई दी, ‘रुक जाइए।’ साथ ही उसने सिपाही से कहा, ‘हाथ जोड़कर युवक से जल्दी से माफी मांगो।’
युवक तब तक बाइक स्टार्ट कर जा चुका था। थानेदार और सिपाही हाथ जोड़े उसे जाते हुए देखते रहे, जब तक वह नजरों से ओझल नहीं हो गया।
– बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’
(सेवानिवृत्त प्राचार्य)
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