विक्षिप्त
अभी कुछ साल पहले की बात है..
नैना जो पेशे से एक “सोशल वर्कर” थी । शहर से सटे हुए एक गाँव के हाइवे से गुजर रही थी।
शाम का वक्त था मध्यम रौशनी में सब धुंधला सा दिख रहा था…
अचानक…. उसकी नज़र हाइवे के नीचे उतरते हुए ब्रिज के कोने पर पड़ी ।
एक महिला बेसुध सी अपने कपड़ों को समेट रही थी ।
नैना ने “कौतूहल” वश कार से उतर करीब जाकर जानना चाहा की आखिर वो ऐसा कर क्यों रही है …?
पास जाकर देखा —उसकी स्थिति देख वह दंग रह गयी …”नैना के “आश्चर्य” का ठिकाना न रहा वह पूरी तरह कांप गयी। ”
“वह एक “मानसिक विकलांग” थी ।”
रक्त से सने उसके कपड़े और गोद में एक “नवजात शिशु “…
शायद_—अभी – अभी जन्मा हो।
इतनी “असहाय स्थिति” जिसमें खुद का होश नहीं और वह उस बच्चें को समेट रही थी।
“बच्चा रोयें जा रहा था और उसे समझ नहीं आ रहा था उसे कैसे चुप करायें। ”
बच्चा भूखा था — उसे माँ के दूध की जरुरत थी और वो ये समझ नहीं पा रही थी …समझती भी कैसे उसे पता ही नहीं था दूध कैसे पीलातें है ।
लेकिन—” माँ तो आखिर माँ ” होती है बच्चें को चुप कराने के हर प्रयास कर रही थी ।
नैना ने आगे बढ़ उसकी मदद करनी चाही मगर वह पीछे हट गयी और उसे मारने “पत्थर” उठा लिया।
इस भय से कहीं वह बच्चें को नुकसान न पहुँचा दे।
“किसी तरह नैना ने उसे उसकी हितैषी होने का आश्वासन देकर शांत कराया ।”
वह पीछे पलटी कार में रखे “गाउन और चादर” को लाकर उसे दिया इशारे से पहनने कहा और चादर से बच्चें को लपेट दिया… “देखा बच्चा स्वस्थ हैं ।”
उसने इंसानियत के नाते उन्हें कार में बैठा पास के जिला अस्पताल में छोड़ आयी… ताकि उनका इलाज अच्छे से हो सके।
वापस आते समय उसके मन में एक संतोष था कि आज बहुत ही अच्छा काम मेरे द्वारा किया गया।
किंतु…” मन में अजीब घृणा का भाव कौंधने लगा था
कि जिस किसी ने भी ये “दुष्कर्म” उसके साथ किया ….”इंसान” था या “जानवर” ।
नहीं… जानवर नहीं हो सकता…!
क्योंकि वह इंसानों से ज्यादा समझदार है।
फिर उसे समझ आया… जिसे वो अभी -अभी अस्पताल पहुँचा कर आयी है वो महिला “मानसिक रोगी” थी या वो पुरूष—“विक्षिप्त मानसिकता” का शिकार था।
हाँ… हाँ—-वो “आदमी” ही विक्षिप्त मानसिक रोगी था न कि वो “महिला”…..।
“आज “मानवता” पूरी तरह शर्मसार हो चुकी थी क्योंकि इस धरती के कुछ प्राणी –“विक्षिप्त” हो चुके थे ।”
——-@——–@———@——–
नाम – दिलशाद सैफी
रायपुर, छत्तीसगढ़
=============================
04/08/2018