।। तुमने ही तो बताया है…।।
तुम बारिश की तरह आईं
और एकबारगी
तेज झिपार से
प्रेम से
सराबोर कर गईं
मैं भींगता रहा–
भींगता रहा
बारिश से बचने की
कोई कोशिश नहीं की
आखिर प्रेम से ही तो
जीवन हरा होता है
तुमने ही तो
बताया है
तुम एक उड़ते
पर्वतीय बादल की तरह
मुझ पर छाईं
और धूप छाया के
प्रेम भरे खेल में
मुझे उलझा गईं
मैंने जब
धूप की इच्छा की
तुम छाया के
मोहिनी रूप में
सामने सामने
उड़ीं
और जब थककर
छाया चाही
तो धूप की सुंदर चुनरी
मुझपर डाल दी
मैं भी
अठखेलियों के
इस खेल का
मजेदार
हिस्सा बना रहा
प्रेम के खेल में
इच्छाओं की छाया ही
पकड़नी पड़ती है
तुमने ही तो
बताया है
तुम ठंड की
गुनगुनी मीठी
धूप की तरह आईं
मुझे विचारों की जकड़न से
मुक्त किया
और धूप को
खुशबू से भर दिया
दुनिया
घास की तरह
नर्म लगने लगी
जहां हर फूल से
प्रेम झांक रहा है
दिन
कितना छोटा हो गया–
पता ही नहीं चला
जिंदगी
प्रेम के एक पल में
समा सकती है
तुमने ही तो
बताया है
दिन
ढलते न ढलते
मैं एक दीपक
जला ही लेता हूं
प्रेम की रोशनी से
लंबी रात भी
काटी जा सकती है
तुमने ही तो
बताया है!
—शीलकांत पाठक