November 22, 2024

विद्यावती मालविका का जन्म अप्रेल 1930 में सी.पी. एंड बरार , फिर मध्यप्रदेश वर्तमान छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के भिलाई में हुआ था । इनके पिता संत श्यामाचरण मिडिल स्कूल भिलाई के प्रधानाध्यापक थे ।
घर का वातावरण शिक्षा , साहित्य , संस्कृति की चर्चा की दृष्टि से बौद्धिक ही था । छोटी छोटी कवितायें छात्र जीवन से ही लिखती रहीं , शिक्षक पिता ने पुत्री की तीव्र बुद्धि , रुचि , साहित्य प्रेम को पहचाना ही नहीं प्रश्रय भी दिया इसतरह उनदिनों विद्यावती जी की पढ़ाई लिखाई निर्विघ्न चलती रही , समयानुसार इन्होंने हिंदी में स्नातकोत्तर करके पी . एच. डी भी किया । तत्कालीन पत्र पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित होती रहीं ..।
सन 1930 में प्रेमचंद ने हंस का प्रकाशन प्रारम्भ किया था जो आदर्श , यथार्थ और कला का सम्यक सामंजस्य था । इसके बाद प्रगतिशील बुद्धिजीवियों का संगठित होना स्वाभाविक था , साहित्य इस परिवर्तन से अछूता कैसे रह सकता था ? सृजनधर्मी मध्यमवर्ग के साथ कृषक समुदाय के दर्द को , संघर्ष को , विदेशी दासता से छटपटाती जनता के मानसिक द्वंद को शब्द देने लगे थे । एक प्रश्न आज भी मन में कौंध जाता है कि हिंदी साहित्य सम्मेलन सांप्रदायिकता और पुनरुत्थानवादी प्रवृत्तियों के प्रचार प्रसार का केंद्र तो नहीं बन गया था ? यह तो निर्विवाद सत्य है कि क्रमशः साहित्यिक परिवेश में संकुचित दृष्टिकोण और दरबारीपन का बोलबाला यत्र तत्र दिखाई देने लगा था ।
राजनीति के क्षेत्र में विदेशी सत्ता की नींव हिला देने में महात्मा गांधी की दांडी यात्रा का उल्लेख तो हमेशा होगा ही …सामान्य जन जिसे नमक आंदोलन कहते थे । इस घटना से भी साहित्यकार प्रभावित हुए जो उस समय के हिन्दी साहित्य में झलकता है । डॉ . विद्यावती मालविका के लेखन में इन सब बातों का प्रभाव स्पष्ट है । दीर्घजीवन पाया था इन्होंने सन 1993 तक वे सृजनशील रहीं ।
इनकी कृतियां हैं …..
1/ श्रद्धा के फूल 2/ अर्चना 3/ आदर्श बौद्ध महिलाएं 4/ बौद्ध कहानियां
5/ बुद्ध चरितावली 6/ हिंदी साहित्य पर बौद्ध धर्म का प्रभाव
आदि पुस्तकें यथासमय पाठकों तक पहुंचती रही थीं । निश्चय ही उनके लेखन में तत्कालीन साहित्यिक , राजनैतिक , धार्मिक गतिविधियों की छाया कहीं प्रत्यक्ष तो कहीं अप्रत्यक्ष रूप से पाठकों को दिखाई देती हैं । प्रादेशिक सम्मान भी उन्हें मिलते रहे । उनका उत्तर जीवन होशंगाबाद में बीता था ।
बंधु गण ! विद्यावती जी को उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश दोनों स्थानों पर विभिन्न पुरस्कारों , सम्मानों से विभूषित किया गया था । हिंदी साहित्य का पाठक / विद्यार्थी होने के नाते मैं गर्व सहित इनका पुण्य स्मरण करती हूं ।
अगली कड़ी लेकर जल्दी ही हाज़िर होउंगी ।
रात जागा पाखी को भी नींद आने लगी , कलम भी थक गई है । विशेष अनुरोध कि आज की तीनों पोस्ट को क्रमशः पढ़ कर अपने विचारों से अवगत कराएं …।
सरला शर्मा
दुर्ग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *