छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं का दुर्लभ संग्रहण
विगत दिनों खैरागढ़ में गंडई-पंडरिया के लोक भाषा विद डॉ. पीसीलाल यादव से भेंट हुई. उन्होंने अपने द्वारा सम्पादित ‘छत्तीसगढ़ी लोकगाथाएं (पारंपरिक पाठ) नाम से एक नया ग्रंथ भेंट किया.’ संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ी शासन के आर्थिक अनुदान से सर्वप्रिय प्रकाशन-दिल्ली द्वारा प्रकाशित यह ग्रंथ ४०० पृष्ठों का है. छत्तीसगढ़ में जो लोकगाथाएँ गायी जाती हैं उन्हें इस ग्रंथ में समाहित किया गया है. यह शोधार्थियों और लोक-कर्मियों के लिए बड़ा उपयोगी संग्रहण है. पीसीलाल यादव जी स्वयं गाँव में जन्मे और पले-बढे हैं और इसलिए अपनी रूचि अनुसार वे लोक-संस्कृति में रचे बसे रहे हैं और इन लोकगाथाओं के प्रत्यक्ष श्रोता रहे हैं. इस पुस्तक में छत्तीसगढ़ी की दस महत्वपूर्ण लोकगाथाएं हैं जैसे – लोरिक चंदा, दसमत कैना, गुजरी गहिरिन, गोपी चंदा, कुंवर रसालू, सदाबिरिज सुरंगा, गूंजपड़की, राजा मोरध्वज, सरवन कुमार और राजा हरिश्चंद्र संकलित है. छत्तीसगढ़ी मूलपाठ के साथ-साथ हिंदी में प्रस्तुत अनुवाद से हिंदी भाषी लोक साहित्य प्रेमी भी इन लोकगाथाओं का पूरा रस ले सकते हैं. यादव जी बताते हैं कि ‘मेरी पत्नी राधा यादव के लोक कंठों से इन लोक गाथाओं को ध्वन्यांकित कर इनके लिप्यान्तरण का कार्य पूरा किया है. इनमें जिन प्रसिद्द लोकगाथा गायकों का जिक्र है वे दिवंगत हो चुके हैं पर उनमें से एक गौतम गिरी गोस्वामी अभी देवपुरा-गंडई में निवासरत हैं. किसी भी लोकगाथा का कोई प्रमाणिक पाठ उपलब्ध नहीं होता. जितने गायक उतने ही भिन्न-भिन्न पाठ, किन्तु पाठ का मूलाधार तो एक ही होता है. इस मायने में डॉ. पीसीलाल यादव का यह संपादन कर्म छत्तीसगढ़ की लोकगाथाओं को सहेजने का एक दुर्लभ और उत्कृष्ट कृत्य है.
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विनोद साव