मौसम नहीं बदलता है
मौसम नहीं बदलता है
दिन-रात बदलते हैं
चारों ओर वही
आतप है, गहरा सन्नाटा
वही गरीबी जीवन में
घर में गीला आटा
लोग बदलते हैं
पर कब हालात बदलते हैं
सिर्फ पुरानी छत से
रिसते रहते हैं सपने
आस्तीन में छिपे सांप
हर दिन लगते डँसने
ढोंगी नहीं बदलते
केवल जात बदलते हैं
अंधकार से जुड़ा हुआ है
जीवन का नाता
रह-रह कर उम्मीदों पर
बस कोहरा गहराता
कहाँ ठूँठ जीवन के
सूखे पात बदलते हैं.
✍️रूपम झा।