केशव शरण की कविताएँ
विनाश
विनाश करना है
लेकिन कहना है
विकास करना है
तर्ज़ भी बता दो
माडल भी दिखा दो
जिस पर विकास करना है
चौतरफ़ा समर्थन भी जुटा लो
एक हवा भी बना दो
उम्मीदें जगा दो
विवेक को सुला दो
विरोध करने वालों को
दबा दो
इतना सब तो करना ही होगा
विनाश करना क्या
इतना आसान है !
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सुन रहे हैं
वे कहते हैं
सेना से
और सुनता है
सारा देश
आपके पराक्रम से
देश की सीमाएँ सुरक्षित हैं
चैन की नींद
सो रहे हैं देश के लोग
देश के लोग
सिर धुन रहे हैं
चैन छीनने वाले को
सुन रहे हैं
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आम आदमी
अच्छा हुआ कि
मैं शासक नहीं हुआ
कि जनता की मुसीबतें
और पूंजीपतियों की सहूलियतें बढ़ाऊं
अच्छा हुआ कि
मैं पूंजीपति नहीं हुआ
कि जंगल को नोचूं
पहाड़ को चोथूं
और ख़ून पीऊं
कामगारों का
अच्छा हुआ कि
मैं सिपाही भी नहीं हुआ
कि शासक और पूंजीपति के ख़िलाफ़ खड़ी
जनता को भून दूं गोलियों से
अच्छा है कि
मैं आम आदमी हूं
जनता के बीच खड़ा
भले गोलियों से भून
दिये जाने के लिए
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थियेटर में आग लगाकर
दलितवाद
नेपथ्य में चला गया है
ताल पर ताल ठोंकने के बाद
मंच से
ग़ायब हो गया है
नाज़ो-अदा से भरा नारीवाद
इस वक़्त मंच पर
आतंकवाद है और राष्ट्रवाद
नोटबंदी है और पे टी एम
मंदिर है और मसजिद है
गाय है और क़साई है
और सामने
एक ऊबा हुआ दर्शक वर्ग
जो कभी भी
कुर्सियां तोड़ सकता है
मंच को तहस-नहस करते हुए
थियेटर में
आग लगाकर
जा सकता है घर
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क्रांति का बिगुल
सरकार
बताती है
उसने इतना विकास किया
तो बताने दो,
विश्वास नहीं
समीक्षा करो
समीक्षा के बाद
जितना विकास दिखायी दे
उसे भी विकास मत मानो
उसमें से घटाओ
पर्यावरण का विनाश
जो विकास के चलते
सरकार ने किया
फिर जितना बचता है विकास
वही मानो
उतना ही विकास जानो
सरकार ने किया
विकास शून्य के नीचे गया
तो
क्रांति का बिगुल बजा दो!
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केशव शरण
23-08-1960 , वाराणसी में।
प्रकाशित कृतियां-
तालाब के पानी में लड़की (कविता संग्रह)
जिधर खुला व्योम होता है (कविता संग्रह)
दर्द के खेत में (ग़ज़ल संग्रह)
कड़ी धूप में (हाइकु संग्रह)
एक उत्तर-आधुनिक ऋचा (कवितासंग्रह)
दूरी मिट गयी (कविता संग्रह)
क़दम-क़दम ( चुनी हुई कविताएं )
न संगीत न फूल ( कविता संग्रह)
गगन नीला धरा धानी नहीं है ( ग़ज़ल संग्रह )
कहां अच्छे हमारे दिन ( ग़ज़ल संग्रह )
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