तस्लीमा नसरीन
महाश्वेता देवी कहती थी- मैमनसिंह जिला,बांग्लादेश की एक लड़की जिसे अंग्रेजी भी कायदे से नहीं आती थी,वह स्त्री की आज़ादी के लिए पूरी दुनिया से अकेली लड़ रही है। तस्लीमा पेशे से डॉक्टर रही हैं,जिसने पितृसत्ता के खिलाफ कलम उठा लिया।देखते देखते अपनी धारदार कलम,बहती हुई निर्बाध नदी की तरह भाषा और अदम्य साहस के दम पर वह बांग्ला की सबसे लोकप्रिय लेखिका बन गई।
लज्जा लिखने से पहले तक तस्लीमा पितृसत्ता और धर्म के खिलाफ अपने तीखे तेवर के बावजुर बांग्लादेश के सभी अखबारों,पत्रिकाओं में खूब छपती थीं।
बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष और पितृसत्ता के खिलाफ लड़ने वाली स्त्रियां कभी कम नहीं रहा।
बांग्लादेश में अल्पसंख्यक उत्पीड़न पर आधारित लज्जा के प्रकाशन के बाद इस्लामी कट्टरपंथियो और सत्ता की राजनीति और राष्ट्र के निशाने पर आ गयी।
बांग्लादेश से निर्वासित होने पर उन्होंने पश्चिम बंगाल में शरण ली। उसी दरम्यान उनसे मुलाकातें और बातें होती रहीं।उसी दौरान दुनियाभर की भाषाओं में उनकी किताबों का अनुवाद छपने लगा।
तस्लीमा सिर्फ इस्लाम के खिलाफ नहीं हैं।वह धर्म के खिलाफ है। समयांतर के लिए इंटरव्यू के दौरान उन्होंने मुझसे साफ साफ कहा था कि जब तक धर्म है,धर्म की सत्ता है- तब तक स्त्री को आज़ादी नहीं मिल सकती।
उन्होंने कहा था- जब तक धर्म है,जाति खत्म नहों हो सकती और दलितों,पिछड़ों,अल्पसंख्यकों को समानता तो क्या न्याय भी नहीं मिल सकता।उनका दमन उत्पीड़न जारी रहेगा।
जब तक धर्म है, धर्म सत्ता है तब तक पितृसत्ता से मुक्ति नहीं है।तब तक जारी रहेगा स्त्री का दमन उत्पीड़न।
उन्होंने कहा था कि जब तक धर्म है,तब तक न स्वतंत्रता है और न मानवाधिकार।
में इसी तस्लीमा नसरीन को जनता हूँ और इसी तस्लीमा नसरीन का समर्थक हूँ।
बिडम्बना है कि धर्म सत्ता की राजनीति ने तस्लीमा को सिर्फ इस्लामविरोधी करार दिया और मीडिया ने उसकी यही छवि बनाई। यह छवि अधूरी है।
मैंने अपने ब्लॉगों के अलावा समय समय पर समयांतर और हंस समेत पत्र पत्रिकाओं में तस्लीमा के मुद्दे पर लिखा है।
पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ने इसी तस्लीमा को कट्टरपंथियों के दबाव में बंगाल से खदेड़ दिया और नागरिकता और घर के लिए उसे दुनियाभर में भटकना पड़ा।
पितृसत्ता के खिलाफ कभी समझौता न करनेवाली तस्लीमा को प्रेरणा अंशु की ओर से जन्मदिन मुबारक।
पलाश विश्वास