हिंदी गद्य लेखन के जनक भारतेन्दु हरिश्चंद्र
हिंदी गद्य लेखन के जनक भारतेन्दु हरिश्चंद्र का आज जन्मदिन है। गूगल के माध्यम से अगर सर्च करेंगे तो भारतेंदु जी के बारे में विस्तार से भी जानकारी मिल सकती है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र का हिंदी समाज इसलिए ऋणी है कि उन्होंने गद्य लेखन की शुरुआत की और साहित्यिक पत्रकारिता की भी नींव रखी। 9 सितंबर 1850 को बनारस के एक बेहद संपन्न परिवार में जन्मे भारतेंदु हरिश्चंद्र 6 जनवरी 1885 को स्वर्गवासी हो गए । उस समय उनकी आयु थी मात्र 34 वर्ष 4 महीने। इतनी कम उम्र में उन्होंने हिंदी साहित्य को जिस विपुल वैभव से समृद्ध किया, वह अद्भुत है। जब वे 17 वर्ष के थे, तब उन्होंने चौखंभा स्कूल स्थापित किया। 18 साल के हुए, तो ‘कविवचन सुधा’ (1868) नामक पत्र का प्रकाशन शुरू किया। 20 साल की उम्र में वे ऑनरेरी मजिस्ट्रेट बना दिए गए थे । 1873 में उन्होंने ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ का प्रकाशन किया, बाद में उसका नाम ‘हरिश्चंद्रचंद्र चंद्रिका’ कर दिया। कुछ अंतराल के बाद 1884 में इसे कर दिया ‘नवोदित हरिश्चंद्र चंद्रिका’ । 1884 में ही उन्होंने ‘बाला बोधिनी’ नामक पत्रिका की शुरुआत की, जो नारी नवजागरण के लिए समर्पित थी। बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि भारतेंदु जी हास्य-व्यंग्य की पत्रिका ‘पंच’ भी शुरू करना चाहते थे लेकिन किसी कारणवश वह न हो सके। उनके लेखन का टोन व्यंग्यप्रधान ही था। इसमें दो राय नहीं कि हिंदी गद्य व्यंव्य की शुरुआत भी भारतेंदु हरिश्चंद्र से ही होती है। उन्होंने ‘अंधेर नगरी’,’ वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति’, ‘भारत दुर्दशा’ जैसे कुल सत्रह कालजयी नाटक हिंदी को दिए। उनका लिखा नाटक ‘सत्य हरिश्चंद्र’ और ‘अंधेर नगरी’ काफी लोकप्रिय हुआ। भारतेंदु जी न केवल नाटक लिखते थे वरन उन का मंचन भी किया करते थे। आस-पास के गांव में जाकर प्रदर्शन भी करते थे। हिंदी के पक्ष में लिखी गई उनकी अनेक कविताएं बेहद लोकप्रिय हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उनके बारे में लिखा था कि ”वह सिद्ध वाणी के अत्यंत सरस हृदय कवि थे।” अंग्रेजी राज के विरुद्ध निरंतर लिखते थे। लेखन के जरिए आजादी का अलख जगाने का काम करते थे। भारतेंदु जी के जन्मदिन को लघु पत्रिका दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। कभी विस्तार से उनके साहित्यिक अवदान पर लिखूंगा। फिलहाल तो हिंदी साहित्य को अपनी प्रतिभा के बलबूते नया आयाम देने वाले इस महान सृजक को शत-शत नमन!
@ गिरीश पंकज