तुम मेरी हो… हिंदी
तुम्हारे साथ,
अहा .! सुखद अलौकिक अनुभूति,
तुम सपनों में नित आती -जाती,
घुंघराले- घुंघराले अक्षरों में,
कोरे कागज पर बिखर जाती,
मैं तुम्हें सहेजती!
ढूंढ़ती ही रहती शब्दों के अर्थ,
कभी सरल कभी कठिन,
लिखती नित कविताओं में,
प्रेम- पीढ़ा दुखों का विस्तार,
भावों का व्यापार,
सिसकते पल बदलते अर्थ,
घात -प्रतिघात,
राख में जीवन कुरेदती!
मिथ्या आडंबर आत्ममुग्धता,
सुनती हूं सत्य की सिसकियां,
असत्य का जयकार,
कभी लड़खड़ाते हैं कदम,
टूटते हैं अंतस के तार,
आंखों को कब तक फेरती!
बता दूं तुम्हें..
तुमसे ही तो मेरा मान है,
सम्मान है अभिमान है,
एक तुम ही तो हो,
जिसके खोने का भय नही,
हारने की चिंता नही,
अलग होने की आशंका नही,
इसीलिए तो मेरी कलम,
सिर्फ तुमको ही ढ़ूंढ़ती।
मनभावन- हिंदी ✍️
नवनीत कमल
जगदलपुर छत्तीसगढ़