नया सवेरा : पुष्पहार
झुरमुटों के बीच पड़ा हुआ बालपंछी,
टकटकी लगाए निहारता घोंसले को ।
ढूँढती हुई निगाहें उसकी इधर-उधर,
माँ किधर तोड़ा किसने घोंसले को ।
बस यही हाल हो चुका है मानवता का,
मानव बेबस निहार रहा मानवता का हाल ।
उम्मीद यह कि मिल जाए कोई तारणहार,
सुधर जाए जिन्दगी ना होने पाए बुरा हाल ।
मानवता के बीज पल्लवित होने दो,
जिन्दगी पुष्पित हो मुखरित होने दो ।
नई सुबह की स्वर्णिम किरणों के संग ।
करते हैं हम तुम्हें सौम्य प्रात: वंदन ।
साईं राम, राधे- राधे, जय श्रीकृष्णा ।👏
त्र्यम्बक राव साटकर “अम्बर”
12-09-2021