November 16, 2024

अर्पणा दुबे की दो कविताएँ

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पिंजरा

मुझे भी अपनी व्यथा कहने दो।
पिंजरे से मुझे आजाद रहने दो।
इस दुनिया को देखना है मुझे भी
हर पल को मुझे महसूस करने दो।

मै भी कुछ दिन यूं चहक लूँ
खुली जिंदगी का सबक लूँ
क्या पता कब क्या हो जाए
खुशी के गीत गा मैं महक लूँ ।

मुझे भी दिल में किनारा दो
पास रख मुझे सब सहारा दो
मुझें भी जीना है सबके संग
खुलकर जीने का सहारा दो।

एक दिन सबको ही उड़ जाना है
ईश्वर के पास सबको ही जाना है
कर्म कर लो कुछ अच्छा सब
उसके पास भी तो कुछ बताना है।
——
हम तुम्हारी हर बात को सहते हैं
तुम्हें दिल में बसा कर रखते हैं ।

मोहबब्त तुमसे है इतना अब
कि तुम्हें खोने से हम डरते है ।

मर जाऊँगी दूर हो कर तुमसे
तस्वीर सीने से लगा रखते है।

विरह हो कर नहीं रह पाऊँँगी
आँखो में अश्क़ जैसे रखते है।

अर्पणा दुबे अनूपपुर मध्यप्रदेश
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