November 16, 2024

श्वेता की तीन कविताएँ

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मेरी प्रिय सखी
कभी-कभी
तुम्हारे हिस्से का आसमां
और तुम्हारे हिस्से की ज़मी कोई दूसरा ही चुनेगा

कुछ पसंदीदा रंगों को भड़कीला भी वो ही कहेगा
फिर तुम्हारे लिए लाल, नीला, पीला रंग भी वही चुनेगा
पैरो में पायल और बिछुए
ना पहनने का ऐलान भी वो करेगा
फिर किसी दिन सिंदूर रोज़ लगाने की
फरमाइश कर
तुम्हे अचंभित भी वो ही करेगा

कभी पिता बन तो कभी पति बन
कहेगा -उड़ो आसमान में
फिर तुम्हारी उड़ान के लिए
आसमान भी वो ही चुनेगा

स्वतंत्रता के नाम पे देगा कुछ ज़िम्मेदारियां
फिर उनकी स्वीकृति और अस्वीकृति
की अर्जी अपनी मर्ज़ी से खारिज़ कर
तुम्हारे हिस्से के कर्तव्य भी
वो ही चुनेगा

समझाएगा दुनिया के रंग
याद कराएगा आदर्शो के पहाड़े
फिर -“तुम भोली हो “कह
तुम्हें अपने आप से कुछ प्रश्न करने
छोड़ देगा

कभी -कभी तुम्हारे हिस्से की ज़मी और आसमां
कोई दूसरा ही चुनेगा

पूछना खुद से
उस दिन ये प्रश्न कि
क्या ये उड़ान तुम नही तय कर सकती?
क्या अपने लिए कुछ चुनाव
तुम खुद नही कर सकती?

गर उत्तर ना मिले
तो ये
प्रश्न खुद से करती रहना

किसी दिन तुम्हारे हिस्से की
ज़मी और तुम्हारे हिस्से का आसमां
तुम्हें ज़रूर मिलेगा।

श्वेता।
(कविता ८ मार्च को लिखी गयीं थी )
——-
मेरी प्यारी हिंदी
तुम सिर्फ़ एक भाषा नही
तुम मेरे अंदर साँस लेता एक दिल भी हो
मनोभाव किसी तक
भेजने का एकमात्र माध्यम भी तुम हो …..

प्रेम के मर्म को जानने वाली कड़ी हो
जो प्रेमवश कभी उर्दू, फ़ारसी और
अरबी शब्दों को भी गले लगा लेती है…

मेरी रचनाओं को जीवंत करने
वाली सरसता और सरलता
में पगी कलमकार भी तुम हो………

लिखूँ किसी भी भाषा में
पर विचारों की जननी तुम हो …..

तुम ही लाती हो एक सैलाब विचारों का
मेरी गद्य कविताओं की गज़लकार भी
तुम हो ..…

मेरी प्यारी हिंदी
तुम बस एक भाषा नही
जीवन का असली श्रृंगार भी तुम हो ।

श्वेता
#हिंदीदिवस #हिंदीभाषा
———-
कमियाँ और कमज़ोरियाँ
खुद में ही तलाश ली जाए
तो बेहतर है
किसी और में खोजेंगे तो
खुद को तराशना छूट जाएगा …

ख़त्म ना होगा कभी
इल्ज़ामों का सिलसिला
खुद से मुलाक़ात करने का
एक नायाब मौक़ा चूक जाएगा …..

ओढ़ लो सारे इल्ज़ाम अपने सर
क्यूँकि चुना तो तुमने ही था
जो उलझे रहे तुम
सवाल- जवाब के फेर में तो
सुकूँ का दामन छूटता जाएगा ……

तराशों खुद को
कि एक मुलाक़ात तुम्हें
अपने अंदर पलती
नव- संभावनाओं
से भी करनी है……

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