जैसा हूँ वैसा ही रहूँगा(कविता)
मैं किसी और के जैसा,क्यों बनूँ?
जैसा हूँ वैसा ही रहूँगा ।
दूसरों की नकल क्यों करूँ?
मैं अपनी भावनाएँ
अपने शब्दों में कहूँगा।
जो कोयला हूँ,तो काला हूँ।
नीम हूँ तो कड़वा।
जो पत्थर हूँ,तो कठोर हूँ।
और काँटा हूँ तो चुभुंगा।
जो पानी हूँ,तो स्वादहीन,
अगर सुखी लकड़ी तो जलूँगा।
जो सागर हूँ, तो सुनामी भी,
हो जाऊँ भूकंप तो निगलूँगा।
जो बरफ़ हूँ, तो शीतल हूँ ,
जलकर आग-सा तपूँगा।
जो हूँ आँधी का विकराल रूप,
तो जन- जीवन तबाह भी करूँगा।
नाम -जपेश ,ग्राम- बड़ेलोरम,
वि.खं.-पिथौरा,जिला-महासमुन्द(छ.ग.)
पिन कोड-492112
मो.नं.-8319275723
Email- japeshpradhan26@gmail.com