ज़िंदगी के ‘अंतिम पड़ाव’ पर-सड़क से खाना बटोरती अपने ज़माने की मशहूर डांसर
मनोहर महिजन
आज हम आपको एक ऐसी हस्ती के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपने जीवन में खूब नाम,शोहरत और दौलत कमाई मगर आख़री वक़्त में उन्हें दो टाइम का खाना तक नसीब न हुआ.इसे जानने के लिये आपको मेरे साथ कई दशक पीछे जाना होगा.
बॉलीवुड में जब भी कभी ‘आइटम गर्ल’ या ‘आइटम डांसर’ की बात निकलती है तो सबसे पहले किसका नाम ज़हन में आता है? त्रावणकोर सिस्टर्स? मधुमती?पद्मा खन्ना? हेलन? इनसे भी पहले एक डांसर ऐसी थे जिसके बिना कोई भी फ़िल्म अधूरी मानी जाती थी-जिसका फिल्मों के पोस्टर्स तक मे शामिल होता था!! मेरे हमउम्र दोस्त तो यकीनन उसके नाम से वाकिफ़ होंगे पर आज कि युवा पीढ़ी ने शायद उसका नाम भी न सुना हो!!है- जी,मैं बात कर रहा हूँ सिनेमा के स्वर्णिम दौर की फिल्मों की धड़कन कुक्कू का
आज 40वीं पुण्यतिथि है.
साल 1928 में एक ‘एंग्लो परिवार’ में जन्मी कुक्कू मोरे 40 और 50 के दशक में हिंदी फिल्म जगत में ‘रबर गर्ल’ के नाम से जानी जाती थी. बचपन से डांस करने का शौक़ कुक्कू को फिल्मों में ले आया.1946 में नानूभाई वकील द्वारा निर्देशित फिल्म ‘अरब का सितारा’ से उनका फिल्मों में प्रवेश हुआ.अपनी पहली ही फिल्म से कुक्कू बड़े बड़े निर्माताओं और निर्देशको की नज़र में आ गई.कुक्कू के करियर का ‘टर्निंग पॉइंट’ महबूब खान की फ़िल्मों से आया. फिल्म ‘अनोखी अदा’ (1948) में उनके डांस नंबर ने उन्हें उस दौर की प्रमुख नर्तकी के रूप में स्थापित किया और अंदाज़ (1949) में, नरगिस, दिलीप कुमार और राज कपूर अभिनीत एक रोमांटिक ड्रामा में इस डांसिंग स्टार को अपने अभिनय को प्रदर्शित करने का अवसर भी. उन्हें कई बड़ी-बड़ी फिल्मों में काम करने के ऑफर मिलना शुरू हो गए. फिर वो ज़माना भी आया जब कुक्कू का स्टेटस फ़िल्म की हीरोइनों से भी बड़ा हो गया. फ़िल्म में एक डांस के लिए वो 6 हजार रुपये चार्ज करने लगी,जो उस समय काफ़ी बड़ी रकम हुआ करती थी.महबूब ख़ान की फ़िल्म ‘आन'( 1952) में,जो उनकी पहली ‘रंगीन फिल्म’ थी, कुक्कू ने एक शानदार कैमियो-डांस किया.उनके नृत्य वाली रंगीन फिल्में केवल दो ही रहीं: ‘आन’ और ‘मयूरपंख’. एक और महत्वपूर्ण जानकारी : व्ही शांताराम के प्रोडक्शन हाउस ‘राजकमल कला मंदिर’ के ‘LOGO’ में फूल बिखेरने वाली लड़की भी कुक्कू ही है.
अपने डांस के अलावा कुक्कू अपनी शानोशौकत और खानपान के लिए भी जानी जाती थी. कुक्कू के पास इज्जत, दौलत और शोहरत के साथ, मुंबई में एक बहुत बड़ा बंगला भी हुआ करता था। उस समय में इनके पास तीन लग्ज़री गाड़ियां थी.एक गाड़ी उनके खुद के लिए,एक दोस्तों के लिए और एक उनके कुत्ते को सैर कराने के लिए.
एंग्लो-बर्मी डांसर और अभिनेत्री हेलेन की कुक्कू पारिवारिक मित्र थीं. हेलन अच्छा डांस कर लेती थी. इसी वजह से उन्हें हेलन से बहुत लगाव था और वो उसमें अपनी छवि देखती थीं.कुक्कू को बॉलीवुड में कई अभिनेताओं/अभिनेत्रियों को ब्रेक दिलाने में मदद करने के लिए भी जाना जाता था. कुक्कू ने 13 वर्षीय हेलेन को फिल्मों में एक ‘कोरस डांसर’ के रूप में ‘शबिस्तान’ और ‘आवारा’ (1951) में इंट्रोड्यूस किया था. कुक्कू और हेलेन विशेष रूप से एक साथ फ़िल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’, ‘यहूदी’ और ‘हीरा मोती’ (1958) दिखाई दीं. कुक्कू की आखिरी फ़िल्म थी ‘मुझे जीने दो’-(1963).आगे चलकर हेलन ने कुक्कू के पद-चिन्हों पर चलकर फिल्म इंडस्ट्री में उन्हीं की तरह बहुत नाम कमाया.खुद हेलन भी अपनी कामयाबी का श्रेय कुक्कू को ही देती है.
मगर कहते है न नसीब और वक़्त का कोई भरोसा नहीं होता!!, पता नहीं कब पलट जाए. कुक्कू के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ.कहा जाता है कि आयकर के नियमों का उल्लंघन करने की वजह से उनकी सारी संपत्ति ज़ब्त कर ली गयी थी. देखते ही देखते सबकुछ ख़त्म हो गया. बड़े-बड़े 5 स्टार होटलों से खाना मंगाके खाने वाली और अपने दोस्तों को भी खिलाने वाली कुक्कू का एक समय ऐसा आया कि वो सब्ज़ी मार्केट में जाकर ‘सब्जी-भाजी वालों’ द्वारा सब्जियां साफ़ करने के बाद फैंकी गई सब्ज़ियों के टुकड़े बटोर कर लाती और पकाती थीं.अंतिम समय में कुक्कू को कैंसर ने गिरफ्त में ले लिया था. मगर अफ़सोस!.. कि जीवन की इस मुश्किल घड़ी में उनके साथ ना कोई रहने वाला था और ना ही कोई साथ देने वाला!! इंडस्ट्री से भी कोई मदद के लिए आगे नहीं आया.आखिर मात्र 53 वर्ष के आयु में इस महान डांसर और अभिनेत्री कुक्कू ने 30 सितम्बर 1981मे इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
उनकी मृत्यु के बाद ही उनके ‘सरनेम’ का पता चला.उनका पूरा नाम था-“कुक्कू मोरे” आज अगर वो ज़िंदा होतीं तो 92 वर्ष की होतीं और हम 40 वीं पुण्यतिथि न मना रहे होते.बहरहाल, स्वर्णिम युग की फिल्मों के सदाबहार दृश्यों और नृत्यों में वो हमेशा जीवित रहेंगी.इस महान नृत्यांगना को शत शत नमन .