हिंदी काव्य में छायावाद के प्रणेता – मुकुटधर पांडेय
हिंदी काव्य में छायावाद के प्रणेता माने जाने वाले मुकुटधर पांडेय की आज जयंती है । 30 सितम्बर 1895 को छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के बालपुर गांव में जन्में मुकुटधर पांडेय की काव्य यात्रा को समझे बिना खड़ी बोली के दूसरे तीसरे दशक के विकास को सही रूप से नहीं समझा जा सकता । उनके निबन्ध छायावाद को नई कविता धारा की सांकेतिक शैली की पहली व्याख्या माना जाता है । यह भी माना जाता है कि इस काव्य धारा का छायावाद नामकरण भी इसी निबन्ध के द्वारा हुआ था । स्वयं जयशंकर प्रसाद ने उन्हें छायावाद का प्रथम प्रयोक्ता माना है ।
पांडेय जी की प्रमुख रचनाओं में पूजा फूल, शैलबाला, विश्वबोध, हृदयदान, स्मृति पुंज आदि हैं । उनकी पहली कविता 14 वर्ष की आयु में आगरा से प्रकाशित स्वदेश बांधव में 1909 में छपी । पांडेय जी ने काव्य के अलावा गद्य रचनाएँ भी दीं । उनके निबन्ध उल्लेखनीय हैं ।1976 में पद्मश्री से सम्मानित मुकुटधर पांडेय का गहरा लगाव जांजगीर जिले के शिवरीनारायण से भी रहा है और उनका मानना था कि बालपुर और शिवरीनारायण महानदी के छोर पर बसे दो साहित्यिक तीर्थ हैं ।उन्होंने कालिदास की क्लासिक रचना मेघदूत का छत्तीसगढ़ी में अनुवाद किया था । हिंदी के अलावा छत्तीसगढ़ी में भी उनकी कई रचनाएँ हैं । जीवन के अंतिम वर्षों तक सृजनात्मक कर्म में लगे रहे मुकुटधर पांडेय का निधन 6 नवम्बर 1989 को हुआ ।
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विश्वबोध
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खोज में हुआ वृथा हैरान
यहाँ ही था तू हे भगवान
गीता ने गुरु ज्ञान बखाना
वेद पुराण जन्म भर छाना
दर्शन पढ़े,हुआ दीवाना
मिटा नहीं अज्ञान
दीन हीन के अश्रु नीर में
पतितों की परिताप पीर में
संध्या के चंचल समीर में
करता था तू गान
देखा मैंने यही मुक्ति थी
यही भोग था,यही भुक्ति थी
घर में ही सब योग मुक्ति थी
घर ही था निर्वाण
– मुकुटधर पांडेय
प्रस्तुति भोलाशंकर तिवारी