November 17, 2024

मुझे कुछ करके जाना है

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मुझे अपने अस्तित्व को सार्थक करना है।
हस्ती भले ही हो पल दो पल की
किंतु सुमन बनकर अपनी महक फैलाकर एक दिन सूख जाना है।
मुझे कुछ करके जाना है।

मुझे अपने अस्तित्व को सार्थक करना है।
हस्ती भले ही हो पल दो पल की
किंतु विटप बनकर अपनी घनी शीतल छांव देखकर कट जाना है।
मुझे कुछ करके जाना है।

मुझे अपने अस्तित्व को सार्थक करना है।
हस्ती भले ही हो पल दो पल की
किंतु विहग बनकर अपना कर्णप्रिय कलरव सुनाकर उड़ जना है।
मुझे कुछ करके जाना है।

मुझे अपने अस्तित्व को सार्थक करना है।
हस्ती भले ही हो पल दो पल की
किंतु मानव बनकर मानवता की महक फैलाकर पंचमहाभूत में मिल जाना है।
मुझे कुछ करके जाना है।

समीर उपाध्याय
मनहर पार्क 96a
चोटिला 363520
जिला सुरेंद्रनगर
गुजरात
भारत
92657 17398
s.l.upadhyay1975@gmail.com

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