अन्तर्यात्रा…..
होता है श्रमशील जो धैर्य वृत्ति के साथ।
मधुर वचन सम्मान से पकड़े जन का हाथ।।
सदा लक्ष्मी की कृपा रहे बने सब काम।
जग उसको स्वीकारता दे मन से सम्मान।।
मात,पिता,गुरु,मित्र का,अतिथिजनो का भाग।
जड़-चेतन प्रति भी रखें धर्म ,कर्म,अनुराग।।
विधि का है वैविध्य यह पंचभूत संग्राम।
अन्तर्यात्रा कर मिलें सबके भीतर राम।।
वही राम आराध्य है वही राम है साध्य।
जग में भी जीते रहें मन में रख वैराग्य।।
गुण से निर्गुण की तरफ जो ले जीना सीख।
वह सात्विक सत्पुरुष है वह समाज की लीक।।
उस लकीर के बोध से मैं भी जी लूं आज।
हृत्तंत्री का नित सुनूं शुभ्र प्रणव का साज।।
~माधुरी लता ‘इला’
4अक्टूबर 2020
सरदार शहर(राजस्थान)