लघुकथा : मिलाद उन नबी का पावन त्यौहार और शरद पूर्णिमा की मीठी खीर
आज मंगलू फिर दारू पीकर घर लौटा।
अबकी बार वह दिन में ही पीकर आया था।
घर आते ही उसने सबसे पहले जी भरकर घर वाली को पीटा फिर गाली गुफ्तार करता हुआ घर की देहरी पर ही लुढ़क गया।
नन्हीं मुनिया तो घबराकर संदूक के पीछे छिप गई।
मुनिया ने आज माँ से खीर बनाने की जिद की थी क्योंकि आज शरद पूर्णिमा का पावन त्यौहार जो था।
शराबी पति मंगलू जब सुबह आवारागर्दी करने निकला तभी मुनिया की माँ ने पति से चावल और चीनी ले आने को कहा था। पर वह कमबख़्त समान तो छोड़िए पूरे होशो हवाश में भी घर न लौटा।
तभी दरवाजे पर किसी ने “मुनिया की माँ” कहकर पुकार लगाई।
माँ ने आँचल से अपने आँखों के मोतियों को समेटा और दरवाजे पर पहुंची।
देखा, पड़ोस के चचा जुम्मन शेख की बेगम मिलाद उन नबी के त्यौहार का तबर्रूक लेकर द्वार पर मुस्कुराते हुए खड़ी थी।
फिर उसने आज हमारा त्यौहार है थाली आगे करते हुए कहा…..लीजिए!!
यह तस्किम कीजिए।
मुनिया ओट में छिपकर सारा दृश्य देख रही थी।
उधर नसरीन भी अपनी अम्मी के साथ आई थी।
मुनिया ने भीतर से ही कहा……माँ! आज खीर बनाओगी ना!!
“पर चीनी…..।
कहते कहते मुनिया की माँ की आँखें छलछला उठीं।”
उम्र और समझदारी से परिपक्व नन्हीं नसरीन दौड़कर अपने घर से एक कटोरे में चीनी भरकर ले आई।
मुनिया ने माँ ने मिलाद उन नबी के तबर्रूक (प्रसाद) में थोड़ा सा दूध व चीनी मिलाया और गाढ़ी खीर तैयार कर चाँदनी रात में छत पर रख दिया।
अगली सुबह मुनिया और चचा शेख का पूरा परिवार इस दिव्य खीर का आनंद ले रहा था जो मानवता के अनोखे रंग से रंगा था।
विक्रम ‘अपना’🌸
नंदिनी-अहिवारा, छत्तीसगढ़ 9827896801