” एक दीप जला लो…”
सत्य पर विजय पाकर यारों
विसर्जन कर आया हूँ बनवास।
मुक्त करके और मुक्त होकर
आया हूँ अपना घर निवास ।।
आश्चर्य हुआ अचंभा हुआ
रह गए हम दंग स्तंभ ।
तीनों भूमि को जीत लिया
अपनी भूमि पर कैसा द्वंद।।
यह कैसा द्वंद कैसा कलह
कैसा धर्म का बँटवारा ।
हम तो यहीं पैदा हुए फिर
किस बात का अंधियारा।।
मेरा राजभवन यहांँ मेरा
वंशज व सूर्यवंशम यहाँ ।
किस बात का धर्म संकट
क्यों हल्ला पंचम यहाँ।।
गीता पढ़ी, महाभारत पढ़ी
पढ़ ली है तुमने रामायण ।
चंद हठ कर्मियों की बातों
पर बना दिया परायण ।।
मैं आ गया हूँ देश में बन-
वास से मेरा मान कहाँ है।
तुम लोग आपस में ही लड़ते
हो मेरा स्थान कहाँ है ।।
दशहरा मना लो सभी दिवाली
का एक दीप जला लो ।
मैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हूँ
मुझको मन में बसा लो।।
मनोज शाह ‘मानस’
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